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गुरुवार, 25 मार्च 2021
होलीगीत "आई होली, आई होली रे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
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कुहरे ने सूरज ढका , थर-थर काँपे देह। पर्वत पर हिमपात है , मैदानों पर मेह।१। -- कल तक छोटे वस्त्र थे , फैशन की थी होड़। लेक...
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सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 26-03-2021) को
"वासन्ती परिधान पहनकर, खिलता फागुन आया" (चर्चा अंक- 4017) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
बहुत बढ़िया सृजन...।
जवाब देंहटाएंगुनगुनाने योग्य मधुर होली गीत...
साधुवाद आदरणीय शास्त्री जी 🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
होली को प्रकृति से बांधकर कर लिखा
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत
होली की हार्दिक शुभकामनाएं
सादर
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंहोली की शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंधूम मचाती होली- भुभ कामनाएँ !
जवाब देंहटाएंवाह मयंक जी आप ने होली साकार कर दी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सृजन - - साधुवाद सह।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर मधुर गीत
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना। होली की हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसुंदर होलीमय प्रस्तुति। सहज भाषा में बढ़िया सृजन के लिए आपको ढेरों शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंप्रणाम शास्त्री जी, होली की हार्दिक शुभकामनायें ...सदैव की भांति अद्भुत दोहे ...चटक रही सेंमल की फलियाँ,
जवाब देंहटाएंचलती मस्त बयारें।
मटक रही हैं मन की गलियाँ,
बजते ढोल नगारे। ..बहुत खूब
बहुत ही बढ़िया । हार्दिक शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंचटक रही सेंमल की फलियाँ,
जवाब देंहटाएंचलती मस्त बयारें।
मटक रही हैं मन की गलियाँ,
बजते ढोल नगारे।
निर्मल रसधार लेकर,
फूलों के हार लेकर,
आई होली, आई होली,
आई होली रे!
प्रकृति की सुंदर छटा को बड़े ही सुंदर ढंग से अपने इस होली गीत में पिरोने के लिए आपको साधुवाद, आदरणीय🌹🙏🌹
बहुत सुंदर प्रकृति को होली के रंगों से सराबोर कार्य गीत ।
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