-- जलने को परवाना आतुर, आशा के दीप जलाओ तो। कब से बैठा प्यासा चातक, गगरी से जल छलकाओ तो।। -- मधुवन में महक समाई है, कलियों में यौवन सा छाया, मस्ती में दीवाना होकर, भँवरा उपवन में मँडराया, मन झूम रहा होकर व्याकुल, तुम पंखुरिया फैलाओ तो। कब से बैठा प्यासा चातक, गगरी से जल छलकाओ तो।। -- मधुमक्खी भीने-भीने स्वर में, सुन्दर राग सुनाती है, सुन्दर पंखों वाली तितली भी, आस लगाए आती है, सूरज की किरणें कहती है, कलियों खुलकर मुस्काओ तो। कब से बैठा प्यासा चातक, गगरी से जल छलकाओ तो।। -- चाहे मत दो मधु का कणभर, पर आमन्त्रण तो दे दो, पहचानापन विस्मृत करके, इक मौन-निमन्त्रण तो दे दो, काली घनघोर घटाओं में, बिजली बन कर आ जाओ तो। कब से बैठा प्यासा चातक, गगरी से जल छलकाओ तो।। -- |
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सोमवार, 18 अक्तूबर 2021
गीत "तुम पंखुरिया फैलाओ तो" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-10-21) को "/"तुम पंखुरिया फैलाओ तो(चर्चा अंक 4222) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
बहुत सुंदर भावों से पूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंअद्भुत सृजन आ0
जवाब देंहटाएंसुंदर छंदों की रचना! अनुपम भावाभिव्यक्ति!--ब्रजेंद्रनाथ
जवाब देंहटाएं