दीप खुशियों के जलाओ, आ रही दीपावली। रौशनी से जगमगाती, भा रही दीपावली।। क्या करेगा तम वहाँ, होंगे अगर नन्हें दिये, चाँद-तारों को करीने से, अगर रौशन किये, हार जायेगी अमावस, छा रही दीपावली। नित्य घर में नेह के, दीपक जलाना चाहिए, उत्सवों को हर्ष से, हमको मनाना चाहिए, पथ हमें प्रकाश का, दिखला रही दीपावली। शायरों को शम्मा से, कवियों को दीपक से लगाव, महकते मिष्ठान से, होता सभी को है लगाव, गीत-ग़ज़लों का तराना, गा रही दीपावली। गजानन के साथ, लक्ष्मी-शारदा की वन्दना, देवताओं के लिए अब, द्वार करना बन्द ना, मन्त्र को उत्कर्ष के, सिखला रही दीपावली। |
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शनिवार, 30 अक्तूबर 2021
गीत "गीत-ग़ज़लों का तराना, गा रही दीपावली" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
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कुहरे ने सूरज ढका , थर-थर काँपे देह। पर्वत पर हिमपात है , मैदानों पर मेह।१। -- कल तक छोटे वस्त्र थे , फैशन की थी होड़। लेक...
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सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (31-10-21) को "गीत-ग़ज़लों का तराना, गा रही दीपावली" (चर्चा अंक4233) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमोहक भाव।