मुखौटे राम के पहने हुए, रावण जमाने में। लुटेरे ओढ़ पीताम्बर, लगे खाने-कमाने में।। दया के द्वार पर, बैठे हुए हैं लोभ के पहरे, मिटी सम्वेदना सारी, मनुज के स्रोत है बहरे, सियासत के भिखारी व्यस्त हैं कुर्सी बचाने में। लुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।। जो सदियों से नही सी पाये, अपने चाकदामन को, छुरा ले चल पड़े हैं हाथ वो, अब काटने तन को, वो रहते भव्य भवनों में, कभी थे जो विराने में। लुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।। युवक मजबूर होकर खींचते हैं रात-दिन रिक्शा, मगर कुत्ते और बिल्ले कर रहें हैं दूध की रक्षा, श्रमिक का हो रहा शोषण, धनिक के कारखाने में। लुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।। |
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बुधवार, 20 अक्तूबर 2021
गीत "सियासत के भिखारी व्यस्त हैं कुर्सी बचाने में" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(२१-१०-२०२१) को
'गिलहरी का पुल'(चर्चा अंक-४२२४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आज के परिदृष्य पर सटीक अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंसटीक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआज के परिपेक्ष्य में सटीक सृजन आ0
जवाब देंहटाएंआज के कटु सत्य को उजागर करती रचना
जवाब देंहटाएंसियासत के भिखारी व्यस्त हैं कुर्सी बचाने में"
जवाब देंहटाएंहद है बेहयाई की ! ना कोई लाज ना कोई शर्म !आज का कटु सत्य
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंश्रमिक का हो रहा शोषण, धनिक के कारखाने में।
जवाब देंहटाएंलुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।।
बहुत सटीक समसामयिक ...
लाजवाब सृजन।