गुजरने
लगा है, सफर धीरे-धीरे कठिन
धीरे-धीरे, सरल धीरे-धीरे किये
हैं जो करतब भुगतने पड़ेंगे पीना
पड़ेगा गरल धीरे-धीरे यहाँ
पाप और पुण्य दोनों खड़े हैं करनी
पड़ेगी पहल धीरे-धीरे जीवन हिस्सा सभी हैं हमारे सुनानी
पड़ेगी ग़ज़ल धीरे-धीरे मेहनत
से अपना नहीं जी चुराना बनाना
पड़ेगा महल धीरे-धीरे इंसाफ
की थाम करके तराजू देना
पड़ेगा दखल धीरे-धीरे सलामत
न रहता कभी "रूप" कोई दिखाना
पड़ेगा शगल धीरे-धीरे |
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गुरुवार, 2 दिसंबर 2021
ग़ज़ल "सुनानी पड़ेगी ग़ज़ल धीरे-धीरे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(०३-१२ -२०२१) को
'चल जिंदगी तुझको चलना ही होगा'(चर्चा अंक-४२६७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सुंदर रचना आ0
जवाब देंहटाएंकिये हैं जो करतब भुगतने पड़ेंगे
जवाब देंहटाएंपीना पड़ेगा गरल धीरे-धीरे
वाह!!!
यहाँ पाप और पुण्य दोनों खड़े हैं
करनी पड़ेगी पहल धीरे-धीरे
बहुत ही लाजवाब सृजन।
वाह !
जवाब देंहटाएंमधुर गीतनुमा ग़ज़ल !