कल केवल कुहरा आया था, अब बादल भी छाया है। हाय भयानक इस सर्दी ने, सबका हाड़ कँपाया है।। भीनी-भीनी पड़ी फुहारें, झीना-झीना उजियारा। आग सेंकता सरजू दादा, दिन में छाया अँधियारा। कॉफी और चाय का प्याला, सबसे ज्यादा भाया है। हाय भयानक इस सर्दी ने, सबका हाड़ कँपाया है।। आलू और शकरकन्दी भी, सबके मन को भाते हैं। गर्म-गर्म गाजर का हलवा, खुश होकर सब खाते हैं। कम्बल-लोई और कोट से, कोमल बदन छिपाया है। हाय भयानक इस सर्दी ने, सबका हाड़ कँपाया है।। हीटर-गीजर और अँगीठी, गज़क, रेवड़ी-मूँगफली। गर्म समोसे, टिक्की-डोसा, अच्छी लगती हैं इडली। मौसम के अनुकूल बया ने, अपना नीड़ बनाया है। हाय भयानक इस सर्दी ने, सबका हाड़ कँपाया है।। |
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रविवार, 12 दिसंबर 2021
गीत "कम्बल-लोई और कोट से, कोमल बदन छिपाया है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (13-12-2021 ) को 'आग सेंकता सरजू दादा, दिन में छाया अँधियारा' (चर्चा अंक 4277 )' पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
मनमोहक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन सर।
जवाब देंहटाएंसादर