बेटी है, बँगला है, खेती है, घपलों में घपले हैं, दिल काले हैं कपड़े उजले हैं, उनके भइया हैं, इनके साले हैं, जाल में फँस रहे, कबूतर भोले-भाले हैं, गुण से विहीन हैं अवगुण की खान हैं जेबों में रहते इनके भगवान हैं इनकी दुनिया का नया विज्ञान है दिन में इन्सान हैं रात को शैतान हैं परदा डालते हैं भाषण से घोटालों पर तमाचे भी पड़ते हैं कभी-कभी गालों पर आदत हो गई है लातों के भूतों को खाते हैं यदा-कदा जनता के जूतों को न कोई धर्म है न ही ईमान है मुफ्त में करते नही अहसान हैं दल के दल-दल में आदमी हलकान है खोट भरा मन में है होटों पर मुस्कान है हर रात को बदलते नये मेहमान है आजकल के नेता कितने महान हैं! |
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मंगलवार, 14 दिसंबर 2021
अकविता "न कोई धर्म है न ही ईमान है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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आज के नेताओ का सटीक चित्रण करती पंक्तियाँ...सटीक सृजन...
जवाब देंहटाएंराजनीतिक परिदृश्य को परिभाषित करती सटीक और धारदार अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंवाह।
जवाब देंहटाएंयथार्थ पूर्ण सटीक सृजन ।
जवाब देंहटाएंवाह!क्या खूब कहा।
जवाब देंहटाएंसादर
अच्छी व्यंगात्मक अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना आदरणीय।
जवाब देंहटाएंहमेशा से हट कर, पर शानदार प्रस्तुति तंज और व्यंग्य।
जवाब देंहटाएंसटीक।