जीवन
प्रहसन के सभी, इस दुनिया में
पात्र। सबका
जीवन है यहाँ, चार दिनों का
मात्र।। -- चाहे
जीवन में रहें, झंझट और बवाल। जीना
सब ही चाहते, हो कैसा भी हाल।। -- जीवन
के इस खेल में, पग-पग पर हैं पाश। मकड़ी
से लेकर सबक, होना नहीं निराश।। -- जीवन
के दो चक्र हैं, सुख-दुख जिनके नाम। दोनों
ही हालात में, धीरज से लो काम।। -- चंचल
मन की हाथ में, रखना खींच लगाम। इसके
हाथों तुम कभी, बनना नहीं गुलाम।। -- जिसने
मन पर कर लिया, स्वामी बन अधिकार। मानवता का मिल गया, उसको ही उपहार।। -- सरल
सुभाव अगर नहीं, धर्म-कर्म सब
व्यर्थ। छल-बल कपट मनुष्य का, करता सदा अनर्थ।। -- चरैवेति
के मन्त्र को, सरिताओं से सीख। सागर भी जल के लिए, जिनसे माँगे भीख।। -- |
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शुक्रवार, 3 दिसंबर 2021
दोहे "चरैवेति का मन्त्र" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०४-१२ -२०२१) को
'हताश मन की व्यथा'(चर्चा अंक-४२६८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंBahot Acha Jankari Mila Post Se . Ncert Solutions Hindi or
जवाब देंहटाएंAaroh Book Summary ki Subh Kamnaye
Poetry Hiny Kavita In Hindi . Kavitayen Hindi Poetry or
बहुत सुंदर प्रेरणादायक सृजन
जवाब देंहटाएंपढ़ कर अच्छा लगा,शास्त्री जी ।
जवाब देंहटाएंबहता पानी ही साफ़ रह पाता है ।