"एक संस्मरण" लगभग 35 साल पुरानी बात है! खटीमा में उन दिनों मेरा निवास ग्राउडफ्लोर पर था। दोनों बच्चे अलग कमरे में सोते थे। हमारे बेडरूम से 10 कदम की दूरी पर बाहर बराम्दे में शौचालय था। रात में मुझे लघुशंका के लिए जाना पड़ा। उसके बाद मैं अपने बिस्तर पर आकर सो गया। लेकिन दिसम्बर का महीना होने के कारण मुझे कुछ ठण्ड का आभास होने लगा। मैंने महसूस किया कि मेरे कपड़े कुछ गीले थे। मन में सोच विचार करता रहा कि मेरे कपड़े कैसे गीले हुए होंगे। तभी याद आया कि मैं कुछ देर पहले लघुशंका के लिए गया था। मन में घटना की पुनरावृत्ति होने लगी तो याद आया कि मैं शौचालय में गिरा पड़ा था और तन्द्रा में होने के कारण पुनः बिस्तर पर आकर लेट गया था। फिर तो पूरी घटना याद आ गयी कि मुझे वहाँ चक्कर आया था और न जाने कितनी देर मैं मूर्छा में रहा। मैंने मूर्छा में जो दिव्य दृश्य देखा उसे आज पाठकों के साथ साझा कर रहा हूँ। “मैं एक अनोखे और आनन्दमय संसार में पहुँच गया था। जहाँ पर मैंने विभिन्न देवी-देवताओं के दर्शन किये। यमराज से मेरा सीधा सम्वाद भी हुआ। जहाँ पर वो अपने गणनाकार से कह रहे थे कि इसे तो अभी बहुत जीना है। इसकी उम्र तो अभी पचास साल और है। तुम इसे यहाँ क्यों ले आये हो।“ इसके बाद मैं होश में आकर अपने बिस्तर पर आकर लेट गया था। मैंने श्रीमती जी को जगाया और पूरी घटना उन्हें बताई तो उनकी नींद तो काफूर हो गयी थी। उन्होंने मेरे कपड़े बदले, बिस्तर बदला और बहुत सी बातें करते रहे। लेकिन इस घटना में खास बात यह रही कि शौचालय में गिरने के बाद भी मेरे किसी अंग में न तो कोई खरौच थी और न ही कोई पीड़ा थी। अब सवेरा हो गया था। हम लोग अपने दैनिक कार्यों में लग गये। उसके बाद आज तक ऐसी किसी घटना की पुनरानृत्ति मेरे साथ नहीं हुई। मैंने तो इसे झेला है और तब से मैं परलोक को मानने लगा हूँ। आप इसे क्या कहेंगे? |
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मंगलवार, 21 दिसंबर 2021
"मेरा एक संस्मरण" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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अब आप सजग हैं।धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआप सदैव स्वस्थ रहें आ0
जवाब देंहटाएंअद्भुत घटना।
जवाब देंहटाएं