जो मानवता के लिए, चढ़ता गया सलीब। वो ही होता कौम का, सबसे बड़ा हबीब।। जिसमें होती वीरता, वही भेदता व्यूह। चलता उसके साथ ही, जग में विज्ञ समूह।। मंजिल है जिस पन्थ में, उस पर चलते लोग। पालन करता नियम जो, वो ही रहे निरोग।। जो जन सेवा के लिए, करता है पुरुषार्थ। उसके सारे काम ही, कहलाते परमार्थ।। थोथी बातों से नहीं, कोई बने मसीह। लालच में जपता सदा, ढोंगी ही तस्बीह।। जिसके दिल में हों भरे, ममता-समता-प्यार। वो जनता के हृदय पर, कर लेता अघिकार।। दीन-दुखी-असहाय को, बाँटो कुछ उपहार। शिक्षा देता है यही, क्रिसमस का त्यौहार।। |
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शनिवार, 25 दिसंबर 2021
दोहे "क्रिसमस-डे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(26-12-21) को क्रिसमस-डे"(चर्चा अंक4290)पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
क्रिसमस डे की बहुत सुन्दर परिभाषा !
जवाब देंहटाएंबड़ा दिन उनका ही होता है जिनका कि दिल बड़ा होता है.
यात्रा पर रहने और आज नेटवर्क उपलब्ध होने के कारण ।मैं आज रचनाओं को देख पा रहा हूँ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय आपके दोहे समसामयिक और अति सुंदर हैं। --ब्रजेंद्रनाथ