चार टके की नौकरी, लाख टके की
घूस। लोलुप नौकरशाह ही, रहे देश को
लूट।। मक्कारों की नाक में, डाले कौन
नकेल। न्यायालय में मेज के, नीचे चलता
खेल।। रहते तो हैं साथ में, बोल-चाल है
बन्द। लेकिन भाई की उन्हें, सूरत नहीं
पसन्द।। कहीं किसी भी हाट में, बिकती
नहीं तमीज। वैसा ही पौधा उगा, जैसा बोया
बीज।। हठ करने का समय तो, निकल गया अब
दूर। वृद्धावस्था में कभी, मत होना
मगरूर।। जो मन में रखता नहीं, किसी तरह
का मैल। खटता है वो रात दिन, ज्यों
कोल्हू का बैल।। बड़े शौक से पालते, जिनको सन्त-महन्त। |
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रविवार, 26 दिसंबर 2021
दोहे "चमचों की महिमा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (27-12-2021 ) को 'चार टके की नौकरी, लाख टके की घूस' (चर्चा अंक 4291) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव