होते गीत-अगीत
हैं, कविता का आधार। असली लेखन है
वही, जिसमें हों उदगार।। चन्दा से है
चाँदनी, सूरज से हैं धूप। सबका अपना ढंग
है, सबका अपना रूप।। हँस कर तो कटती
नहीं, ये पथरीली राह। पूरी हों इस
जनम में, कैसे मन की चाह।। कोरोना के दैत्य ने, फैलाया है
जाल। अन्त नहीं अब तक हुआ, बीत गये दो
साल।। पाँच प्रदेशों में अभी, हैं
नजदीक चुनाव। कोरोना से कीजिए, अपना वहाँ
बचाव।। नहीं किसी को है यहाँ, लोगों की
परवाह। भीड़ जुटाने में लगे, मोदी नड्डा
शाह।। सभी विपक्षी कर रहे, दल-बल से
प्रचार। देखें किसकी जीत हो, किसकी होगी
हार।। |
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गुरुवार, 16 दिसंबर 2021
दोहे "कविता का आधार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
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कुहरे ने सूरज ढका , थर-थर काँपे देह। पर्वत पर हिमपात है , मैदानों पर मेह।१। -- कल तक छोटे वस्त्र थे , फैशन की थी होड़। लेक...
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सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
सुंदर दोहे
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१७-१२ -२०२१) को
'शब्द सारे मौन होते'(चर्चा अंक-४२८१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
समसामयिक मुद्दों तथा कोरोना पर केंद्रित सुंदर सार्थक दोहे ।
जवाब देंहटाएंसमसामयिक मुद्दों पर केंद्रित सार्थक दोहे...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर दोहे।
जवाब देंहटाएं