गंगा जी के नीर की, दूर हो गयी पंक।।
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धान घरों में आ गये,
कृषक रहे मुसकाय।
अपने मन के छन्द को,
रचते हैं कविराय।।
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हरी-हरी उगने लगी,
चरागाह में घास।
धरती से आने लगी,
सोंधी-तरल सुवास।।
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देख-देख कर फसल को,
खुश हो रहे किसान।
माता जी का हो रहा,
घर-घर में गुणगान।।
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पंचपर्व नजदीक हैं,
सजे हुए बाजार।
दूकानों में आज तो,
उमड़ी भीड़ अपार।।
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मिलता है भगवान के,
मन्दिर में सन्तोष।
माता जी का भुवन में,
गूँज रहा उद्घोष।।
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होता है अन्तःकरण,
जब मानव का शुद्ध।
दर्शन देते हैं तभी,
महादेव अनिरुद्ध।।
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जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
13/10/2019 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
http s://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (१३ -१०-२०१९ ) को " गहरे में उतरो तो ही मिलते हैं मोती " (चर्चा अंक-३४८७ ) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
शानदार दोहे आदरणीय ।
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