मन के भीतर
है भरा, दुनियाभर का ज्ञान।।
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माटी
का दीपक भले, कितना रहे कुरूप।
जलकर
बाती नेह की, फैला देती धूप।।
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दीवाली
पर द्वार को, कभी न करना बन्द।
झिलमिल
करते दीप ही, देते हैं आनन्द।।
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सदा
स्वदेशी का करो, जीवन में उपयोग।
मत
चीनी सामान का, करो कभी उपभोग।।
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सुलभ
सभी है देश में, आवश्यक सामान।
फिर
क्यों लोग विदेश की, चला रहे दूकान।।
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नहीं
किसी भी क्षेत्र में, पीछे अपना देश।
फिर
क्यों टुकड़े बीनने, जाते युवक विदेश।।
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गाते
गान विदेश का, खा स्वदेश का माल।
भारत-भू
को कलंकित, करते आज दलाल।।
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बुधवार, 23 अक्तूबर 2019
दोहे "आवश्यक सामान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
एक ही मंत्र...मन रक्खो धनवान
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24.10.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3498 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की गरिमा बढ़ाएगी ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क