उदात्त भावनाओं की शायरी
“पेपरवेट”

पंजाबी मूल के कृषक परिवार में 1980 में जन्मी पेशे से शिक्षिका श्रीमती राजविन्दर कौर एक कामकाजी महिला हैं। मैंने अपनी अनुभवी दृष्टि से अक्सर यह देखा है कि कामकाजी महिलाओं का अधिकांश समय अपने कार्यालय या चूल्हे-चौके तक ही सीमित हो जाता है। बहुत कम महिलाएँ ऐसी होती हैं जो अपने दैनिक कार्यों में लेखन को भी स्थान देती हैं। ऐसी ही साहित्य जगत की उदीयमान प्रतिभा श्रीमती राजविन्दर कौर भी हैं। जो समाज को अपनी लेखनी से घन्य कर रहीं हैं।
मुझे आपकी सद्यः प्रकाशित कृति “पेपरवेट” को पढ़ने का सौभाग्य मिला है।जिसमें आपने 89 अतुकान्त रचनाओं का समावेश किया है। इस कृति की ग्यारहवीं रचना पेपरवेट है। जिसमें आपने सेलफोन के माध्यम से अपनी भावनाओं को सीधे-सरल और आम बोलचाल की भाषा में बखूबी उतारा है। इस रचना का महत्वपूर्ण अंश निम्नवत् है-
“बुक मार्क
लगाने की
कभी आदत
नहीं रही
फोन ही अब
बन जाता है
अक्सर
मेरी किताबों का
पेपरवेट”
मेरा अब तक यह मानना था कि तुकान्त और गेय रचनाएँ ही कविता कहलाती हैं मगर कुछ आधुनिक कवियों की कविताएँ पढ़कर मी यह धारणा बदल गयी है। अब मेरा मानना यह है कि सशक्त शब्दों से जो रचनाएँ लिखी जाती हैं वो मन पर गहरे पैंठ जाती हैं और ऐसी रचनाएँ वास्तव में कविता कहलातीं हैं। श्रीमती राजविन्दर कौर ने अपने सशक्त शब्दों और शुद्ध अन्तःकरण से अपनी रचनाओं को उकेरा है।
पेपरवेट में संकलित उनकी रचना “मेरी लकीरों” का कुछ अंश इस प्रकार है जो मन पर सीधा असर करती हैं-
“आड़ी तिरछी
लकीरों को जब
देखती हूँ गौर से
कभी-कभी
तुम्हारे चेहरे से मिलता
एक चेहरा उभर जाता है
इन लकीरों में
तब मेरी नजर
हथेलियों में
गहरी गड़ जाती है
और
अपने सामने
तुम्हें खींचकर लकीरों से
खड़ा कर लेना चाहती हूँ...”
इसी मिजाज की एक और रचना “यकीनन भोर है” जो पाठकों के मन में आशा का संचार अवश्य करेगी। देखिए इसका मुख्य अंश-
“...मेरे अन्दर
आजकल
कोई शोर है
और ये वही है
जो मेरे सुकून का
चोर है
गुजर ही जायेगी
स्याह तल्खियों की रात
इसके बाद तो
यकीनन भोर है”
“हो गया पराया रिश्ता” में आपने एक संवेदनशील और मार्मिक रचना को कुछ इस प्रकार उकेरा है-
“...शक के घेरे में मेरा नाम
अभी-अभी हो गया पराया
पल भर में एक रिश्ता
दिल की सादादिली
सिसकियाँ भरती आहिस्ता-आहिस्ता
आँखों की कोई नमी न देखे
न देखे
दिल से लहू जो रिसता
हाय! अभी-अभी
हो गया पराया
पलभर में एक रिश्ता”
पूर्ण समर्पण और कृतज्ञता को प्रकट करती “चाँद” शीर्षक से इस संकलन की एक और रचना भी देखिए-
“..अँधेरा छाँटकर तुमने
मेरे वजूद को
चमकाया है
तुम ही तो हो
मेरे पूर्णिमा के चाँद...”
इस संकलन में संकलित “अहद और तअल्लुक” नामक रचना के शब्द भी बहुत प्रभावशाली हैं-
“मुहब्बत के साये
कभी मेरे
सर से न गये
एक दर पर
किया था सजदा
फिर बाद उसके
किसी दर पर न गये...”
वर्तमान परिवेश का चित्रण करते हुए “हूरें नहीं मिलतीं” में आपने उग्रवादियों को नसीहतें देते हुए लिखा है-
“उनसे कहो
शरीर पर
बम बाँधकर
भीड़ में
निर्दोषों को मारकर
हूरें नहीं मिलतीं...”
“सरफिरी हवा” को ताकीद करते हुए कवयित्री राजविन्दर कौर लिखती हैं-
“ऐ सरफिरी हवा
तुझे ताकीद है
मेरी मुँडेर का चराग
यूँ न बुझाया कर
जरा सलीके से
पेश आया कर...”
साहित्य की विधाएँ साहित्यकार की देन होती हैं। जो समाज को दिशा प्रदान करती हैं, जीने का मकसद बताती हैं। सूर, कबीर, तुलसी, जायसी, नरोत्तमदास इत्यादि समस्त कवियों ने अपने साहित्य के माध्यम से समाज को कुछ न कुछ नया देने का प्रयास किया है। “पेपरवेट” की शायरी भी एक ऐसा ही प्रयोग है। जो डॉ. राजविन्दर कौर की कलम से निकला है।
मुझे आशा ही नहीं अपितु पूरा विश्वास भी है कि पेपरवेट की कविताएँ पाठकों के दिल की गहराइयों तक जाकर अपनी जगह बनायेगी और समीक्षकों की दृष्टि में भी यह उपादेय सिद्ध होगी।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
समीक्षक
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कवि एवं साहित्यकार
टनकपुर-रोड, खटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262308
मोबाइल-7906360576
Website. http://uchcharan.blogspot.com/
E-Mail . roopchandrashastri@gmail.com
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