आ भी जाओ चन्द्रमा तारों भरे आकाश में।।
चमकते लाखों सितारें किन्तु तुम जैसे कहाँ,
साँवरे के बिन कहाँ अटखेलियाँ और मस्तियाँ,
गोपियाँ तो लुट गईं है कृष्ण के विश्वास में।
आ भी जाओ चन्द्रमा तारों भरे आकाश में।।
आ गया मौसम गुलाबी, महकता सारा चमन,
छेड़ती हैं साज लहरें, चहकता है मन-सुमन,
पुष्प, कलिकाएँ, लताएँ मग्न हैं परिहास में।
आ भी जाओ चन्द्रमा तारों भरे आकाश में।।
आज करवाचौथ पर मन में हजारों चाह हैं,
सब सुहागिन तक रही केवल तुम्हारी राह हैं,
चाहती हैं सजनियाँ साजन बसे हों पास में।
आ भी जाओ चन्द्रमा तारों भरे आकाश में।।
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बुधवार, 16 अक्तूबर 2019
गीत "करवाचौथ पर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17.10.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3491 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति इस मंच की शोभा बढ़ाएगी ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 17 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी सामयिक रचना
जवाब देंहटाएंचमकते लाखों सितारें किन्तु तुम जैसे कहाँ,
जवाब देंहटाएंसाँवरे के बिन कहाँ अटखेलियाँ और मस्तियाँ,
गोपियाँ तो लुट गईं है कृष्ण के विश्वास में।
आ भी जाओ चन्द्रमा तारों भरे आकाश में।।
वाह गुरूजी ! अत्यंत मनभावन सरस काव्य !!!!!!!! हार्दिक शुभकामनायें और आभार |