उत्सव में साकार बनाओ तुम।
अपने घर में मिट्टी के ही,
दीपक सदा जलाओ तुम।।
--
चीनी लड़ियाँ नहीं लगाना, अबकी बार दिवाली
में,
योगदान सबको करना है, अपनी अर्थप्रणाली में,
अपने जन-गण की ताकत,
दुनिया को आज दिखाओ तुम।
अपने घर में मिट्टी के ही,
दीपक सदा जलाओ तुम।।
--
महापर्व पर रहे न कोई, नर-नारी कंगाली में,
खुश होकर खुशियों को बाँटो, रहो न खामखयाली
में,
कानों को जो सबको भाये,
वैसा साज बजाओ तुम।
अपने घर में मिट्टी के ही,
दीपक सदा जलाओ तुम।।
--
चहल-पहल होती पर्वों पर, हाट और बाजारों
में,
सावधान रहना है सबको, चूक न हो रखवाली में,
काँटे-कंकड़ रहे न पथ में,
ऐसी राह बनाओ तुम।
अपने घर में मिट्टी के ही,
दीपक सदा जलाओ तुम।।
--
भरी हुई है वैज्ञानिकता, भारत के त्यौहारों
में,
प्रीत-रीत से दिये जलाओ, घर-आँगन दीवारों
में,
ईद-दिवाली-होली मिलकर,
सबके साथ मनाओ तुम।
अपने घर में मिट्टी के ही,
दीपक सदा जलाओ तुम।।
--
ब्रह्मा बन कच्ची माटी को, देते जो आकारों
में,
खुशियाँ लाती है दीवाली, कारीगर कुम्भारों में,
उनकी रचनाकारी का भी,
कुछ तो दाम लगाओ तुम।
अपने घर में मिट्टी के ही,
दीपक सदा जलाओ तुम।।
--
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
रविवार, 27 अक्तूबर 2019
गीत "मिट्टी के ही दीपक सदा जलाओ तुम" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
कुहरे ने सूरज ढका , थर-थर काँपे देह। पर्वत पर हिमपात है , मैदानों पर मेह।१। -- कल तक छोटे वस्त्र थे , फैशन की थी होड़। लेक...
-
सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (२८ -१०-२०१९ ) को " सृष्टि में अँधकार का अस्तित्त्व क्यों है?" ( चर्चा अंक - ३५०२) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी