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कुलदीपक
की सहचरी, घर का है आधार।
बहुओं
को भी दीजिए, बेटी जैसा प्यार।।
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बाबुल
का घर छोड़कर, जब आती ससुराल।
निष्ठा
से परिवार तब, बहुएँ सहीं सम्भाल।।
नहीं
सुता से कम यहाँ, बहुओं का प्रतिदान।
भेद-भाव
को त्यागकर, उनको देना मान।।
बहुओं
से घर का चमन, होता है गुलजार।
बहुओं
को भी दीजिए, बेटी जैसा प्यार।।
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बहुएँ
घर की स्वामिनी, हैं जगदम्बा-रूप।
अपने
को खुद ढालतीं, रिश्तों के अनुरूप।।
सुन
कर कड़वी बात भी, बहू न होती रुष्ट।
रहती
हर हालात में, शान्त और सन्तुष्ट।।
बहुओं
पर मत कीजिए, हिंसा-अत्याचार।
बहुओं
को भी दीजिए, बेटी जैसा प्यार।।
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हो
जाते परिवार में, कभी-कभी मतभेद।
मगर
न रखना चाहिए, आपस में मनभेद।।
नया
जमाना आ गया, नये-नये हैं काज।
बहुओं
पर मत थोपना, रूढ़ी और रिवाज।।
वट-पीपल
के वृक्ष सा, रहना सदा उदार।
बहुओं
को भी दीजिए, बेटी जैसा प्यार।।
रंग-रंग
के सुमन हैं, लेकिन उपवन एक।
फूलों
से होता सदा, देवो का अभिषेक।।
घर
के बड़े बुजुर्ग हैं, देवताओं का रूप।
सहते
मौसम की वही, बरखा-सरदी-धूप।।
हर उत्सव
पर पर बाँटिए, बहुओं को उपहार।
बहुओं
को भी दीजिए, बेटी जैसा प्यार।।
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बहुओं
के कारण बने, दादा-दादी लोग।
वंशबेल
का बिन बहू, बनता नहीं सुयोग।।
पोते-पोती
से हुआ, उपवन है गुलजार।
कहलाता
है चमन वो, जिसमें रहे बहार।।
सास-ससुर
के प्यार की, बहुओं को दरकार।
बहुओं
को भी दीजिए, बेटी जैसा प्यार।।
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जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (0६ -१०-२०१९ ) को "बेटी जैसा प्यार" (चर्चा अंक- ३४८०) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसास-ससुर के प्यार की, बहुओं को दरकार
जवाब देंहटाएंबहुओं को भी दीजिए, बेटी जैसा प्यार
बहुत ही सुंदर बात कही आपने ,सादर नमस्कार आपको
बहुत सुंदर कथन लिए सुंदर दोहे।
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