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दर्द का सिलसिला दिया तुमने
आज रब को भुला दिया तुमने
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हमने करना वफा नहीं छोड़ा
नफरतों का सिला दिया तुमने
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खिलती चम्पा को नोंचकर फेंका
फिर नया गुल खिला दिया तुमने
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हमको आब-ए-हयात के बदले
फिर हलाहल पिला दिया तुमने
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मौत माँगी थी हमने मौला से
फिर से मुर्दा जिला दिया तुमने
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छाँव कैसे मिलेगी बरगद की
पेड़ जड़ से हिला दिया तुमने
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'रूप' की इस हसीन वादी में
इश्क में विष मिला दिया तुमने
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शनिवार, 7 दिसंबर 2019
ग़ज़ल "नफरतों का सिला दिया तुमने" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह !वाह !सर बेहतरीन से बेहतरीन
जवाब देंहटाएंसादर
सत्य ,
जवाब देंहटाएंसादर .. नील