सरदी अब घटने लगी, चहका है मधुमास। खेतों से नव-अन्न की, आने लगी सुवास।। -- बया नीड़ से झाँकती, अपने चारों ओर। हरित धरा पर हो गयी, अब तो सुन्दर भोर।। -- धूम मचाने आ गया, फिर से अब ऋतुराज। बदल गया मधुमास में, सबका आज मिजाज।। -- जोड़ों पर चढ़ने लगा, फिर से इश्क बुखार। वादों की चलने लगी, अब तो मस्त बयार।। -- लगा पिघलने हिमालय, बहता शीतल नीर। काँवड़ लेने जायेंगे, अब बहनों के वीर।। -- मौसम आवारा हुआ, उमड़ रहा है प्यार। नेह-नीर का पान कर, फूल बने उपहार।। -- बिखरे चारों ओर हैं, प्रेम-दिवस के रंग। दकियानूसी लोग तो, करें रंग में भंग।। |
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मंगलवार, 1 फ़रवरी 2022
दोहे "फूल बने उपहार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (1-2-22) को "फूल बने उपहार" (चर्चा अंक 4328)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
ऋतुराज का स्वागत है
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत ही सुंदर सृजन सर।
जवाब देंहटाएंसादर
वाह! बहुत ही खूबसूरत
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सर!
जवाब देंहटाएंसरदी अब घटने लगी, चहका है मधुमास।
जवाब देंहटाएंखेतों से नव-अन्न की, आने लगी सुवास।।
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बया नीड़ से झाँकती, अपने चारों ओर।
हरित धरा पर हो गयी, अब तो सुन्दर भोर।।
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धूम मचाने आ गया, फिर से अब ऋतुराज।
बदल गया मधुमास में, सबका आज मिजाज।।
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जोड़ों पर चढ़ने लगा, फिर से इश्क बुखार।
वादों की चलने लगी, अब तो मस्त बयार।।
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लगा पिघलने हिमालय, बहता शीतल नीर।
काँवड़ लेने जायेंगे, अब बहनों के वीर।।
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मौसम आवारा हुआ, उमड़ रहा है प्यार।
नेह-नीर का पान कर, फूल बने उपहार।।
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बिखरे चारों ओर हैं, प्रेम-दिवस के रंग।
दकियानूसी लोग तो, करें रंग में भंग।।
मदनोत्सव था पर्व अब वेलेंटाइन डे ,
प्रेम संदेशा भेजते रहते मुस्टंडे। सुंदर अभिव्यंजना पूर्ण दोहावली
दोहों की बहती रहे यूं ही मस्त बयार ,शास्त्री जी रचते रहें यूं राग मल्हार !
kabirakhadabazarmein.blogspot.com