दुर्गम पथरीला पथ है, आगे बढ़ना आसान नहीं। ऊँची पर्वत-मालाओं पर, चढ़ना है आसान नहीं।। पहले पढ़ना-लिखना फिर, जीविका कमाना पड़ता है, कदम-कदम पर यहाँ बहुत से, कष्ट उठाना पड़ता है। दुनियादारी एक हक़ीक़त, ये गुड़ियों का खेल नहीं- घास-फूस-तिनके चुन कर, घर-बार बनाना पड़ता है। जीवन तो है एक साधना, तप करना आसान नहीं। ऊँची पर्वत-मालाओं पर, चढ़ना है आसान नहीं।। हाड़ कँपाती सर्दी लू के, थप्पड़ खाना पड़ता है, आँधी-पानी में खेतों में, पौध लगाना पड़ता है। स्वयं परिश्रम करना पड़ता, नहीं हाट में ये मिलता, मक्कारों, बे-ईमानों को, सबक सिखाना पड़ता है। सत्य-अहिंसा की राहों पर, चलना है आसान नहीं। ऊँची पर्वत-मालाओं पर, चढ़ना है आसान नहीं।। |
बिलकुल सही कहा आपने । देखने में सुंदर परंतु बहुत दुर्गम जीवन होता है पहाड़ का । सुंदर सराहनीय रचना।
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (21-02-2022 ) को 'सत्य-अहिंसा की राहों पर, चलना है आसान नहीं' (चर्चा अंक 4347) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:30 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत ही सुंदर सृजन सच कहा आसान नहीं यह दुनिया दारी।
जवाब देंहटाएंसादर