-- घाम अच्छा लग रहा, मौसम गुलाबी हो गया। -- देह का अन्दाज भी, अब तो शबाबी हो गया। -- कुदरती परिवेश का, जीवन किताबी हो गया।। -- गर्मियों में घाम कितना आफताबी हो गया। -- गन्ध पाकर फूल की, भँवरा शराबी हो गया। कुदरती परिवेश का, जीवन किताबी हो गया।। -- मस्त मौसम देखकर, तन-मन बसन्ती हो गये, लहजा हवाओं का अभी तो लाजवाबी हो गया। कुदरती परिवेश का, जीवन किताबी हो गया।। -- चीड़ के उन्मुक्त पादप, मस्त हो लहरा रहे, चाँदनी का 'रूप' कितना माहताबी हो गया। कुदरती परिवेश का, जीवन किताबी हो गया।। -- |
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मंगलवार, 15 फ़रवरी 2022
गीत "जीवन किताबी हो गया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बेहतरीन रचना आदरणीय।
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