-- मौसम
है मधुमास का, वासन्ती परिवेश। मन-उपवन
में गूँजते, प्यार भरे सन्देश।१। -- आया
फागुन कम हुई, शीतलता की मार। मलयानिल
से चल पड़ी, मन्द-सुगन्ध बयार।२। -- फूली
सरसों खेत में, जीवित हुआ बसन्त। आसमान
से हो गया, कुहरे का अब अन्त।३। -- शिव-तेरस
का आ रहा, अब पावन त्यौहार। बम-भोले
की हो रही, अब तो जय-जयकार।४। -- नर-नारी
सब मानते, मन से जिन्हें
सुरेश। विध्न
विनाशक के पिता, जय हो देव महेश।५। -- काँवड़
लेने को चले, अब नर-नारि अनेक। पावन
गंगा नीर से, होगा शिव अभिषेक।६। -- गंगा
जल से आचमन, करते लोग सुधीर। अमृत
से कम है नहीं, गंगा जी का नीर।७। -- अमृत
के अनुपान से, मिले देव का मान। महादेव
बन जाइए, करके विष का पान।८। -- सच्चे
मन से जो कीजिए, शिव-शंकर का ध्यान। भक्तों
पर करते कृपा, आशुतोष भगवान।९। |
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शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2022
दोहे "वासन्ती परिवेश" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (26-02-2022 ) को 'फूली सरसों खेत में, जीवित हुआ बसन्त' (चर्चा अंक 4353) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत सुन्दर रचना , मन प्रफुल्लित हो गया वासन्ती परिवेश में महाशिव रात्रि की ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं , शास्त्री जी प्रणाम !
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