दोहा गीत -- भाई-भाई में नहीं, पहले जैसा प्यार।। (१) बेकारी में भा रहा, सबको आज विदेश। खुदगर्ज़ी में खो गये, ऋषियों के सन्देश।। कर्णधार में है नहीं, बाकी बचा जमीर। भारत माँ के जिगर में, घोंप रहा शमशीर।। आज देश में सब जगह, फैला भ्रष्टाचार। भाई-भाई में नहीं, पहले जैसा प्यार।। (२) आपाधापी की यहाँ, भड़क रही है आग। पुत्रों के मन में नहीं, माता का अनुराग।। बड़ी मछलियाँ खा रहीं, छोटी-छोटी मीन। देशनियन्ता पर रहा, अब कुछ नहीं यकीन।। छल-बल की पतवार से, कैसे होंगे पार, भाई-भाई में नहीं, पहले जैसा प्यार।। (३) ओढ़ लबादा हंस का, घूम रहे हैं बाज। लूट रहे हैं चमन को, माली ही खुद आज।। खूनी पंजा देखकर, सहमे हुए कपोत। सूरज अपने को कहें, ये छोटे खद्योत।। मन को अब भाती नहीं, वीणा की झंकार। भाई-भाई में नहीं, पहले जैसा प्यार।। (४) जब हो सबका साथ तो, आता तभी विकास। महँगाई के दौर में, टूट रही है आस।। कोरोना ने हर लिया, जीवन का सुख-चैन। समय पुराना खोजते, लोगों के अब नैन।। आशाएँ दम तोड़ती, फीके हैं त्यौहार। भाई-भाई में नहीं, पहले जैसा प्यार।। (५) कुनबेदारी ने हरा, लोकतन्त्र का 'रूप'। आँगन में आती नहीं, सुखद गुनगुनी धूप।। दल-दल के अब ताल में, पसरा गया है पंक। अब वो ही राजा हुए, कल तक थे जो रंक।। जन-जन का हो उन्नयन, मन में यही विचार। भाई-भाई में नहीं, पहले जैसा प्यार।। -- |
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रविवार, 13 फ़रवरी 2022
दोहागीत "फैला भ्रष्टाचार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (14-02-2022 ) को 'ओढ़ लबादा हंस का, घूम रहे हैं बाज' (चर्चा अंक 4341) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:30 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
हे कविराज, कविता तो आपकी बहुत अच्छी है लेकिन हमको उस पर एक ऐतराज़ है.
जवाब देंहटाएंआपको देश-नियंता पर ऐतबार क्यों नहीं है?
वह आपको इतने मीठे-मीठे सपना दिखाता है. आप दो-चार दिन तो सपने साकार होने के इंतज़ार में तो ख़ुश रहते ही हैं. और फिर आगे चल कर वो सपने टूट जाएं तो आपको नए सपनों की फ़ेहरिस्त थमा दी जाती है.
सपनों में मगन रहिए, उनके टूटने की चिंता मत कीजिए.
'जन जन का हो उन्नयन'...बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक सामयिक एवं लाजवाब दोहे
हर पंक्ति में आज का कड़वा सच समाया हुआ है। सादर नमन।
जवाब देंहटाएं