आरती उतार लो, आ गया बसन्त है! ज़िन्दग़ी सँवार लो, आ गया बसन्त है! -- खेत लहलहा उठे, खिल उठी वसुन्धरा, चित्रकार ने नया, आज रंग है भरा, पीत वस्त्र धार लो, आ गया बसन्त है! ज़िन्दग़ी सँवार लो, आ गया बसन्त है! -- शारदे के द्वार से, ज्ञान का प्रसाद लो, दूर हों विकार सब, शब्द का प्रसाद लो, धूप-दीप साथ ले, आरती उतार लो! आ गया बसन्त है! ज़िन्दग़ी सँवार लो, आ गया बसन्त है! -- माँ सरस्वती से आज, बिम्ब नये माँग लो, वन्दना के साथ में, भाव नये माँग लो, मातु से प्रवाह की, अमल-धवल धार लो। आ गया बसन्त है! ज़िन्दग़ी सँवार लो, आ गया बसन्त है! -- |
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शनिवार, 5 फ़रवरी 2022
गीत "शारदे के द्वार से ज्ञान का प्रसाद लो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (6-2-22) को "शारदे के द्वार से ज्ञान का प्रसाद लो"(चर्चा अंक 4333)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
वसंत के आगमन पर माँ सरस्वती का सुन्दर गीत प्रस्तुत किया है आपने, माँ की कृपा सभी पर बनी रहे
जवाब देंहटाएंवसंतोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें
बहुत सुन्दर सृजन । वसंतोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआदरणीय, आपका यह गीत शब्द - शब्द अनुप्राणित करने वाला है। हार्दिक साधुवाद!
जवाब देंहटाएंमाँ सरस्वती से आज,
जवाब देंहटाएंबिम्ब नये माँग लो,
वन्दना के साथ में,
भाव नये माँग लो,
मातु से प्रवाह की,
अमल-धवल धार लो।
आ गया बसन्त है!
ज़िन्दग़ी सँवार लो,
आ गया बसन्त है!
वाह! कितनी सुंदर विनय की है आपने माँ सरस्वती से!