-- धूप
खिली है गगन में, पछुआ चली बयार मौसम
है मधुमास का, चमन हुआ गुलजार।। -- कितना
निर्मल बह रहा, गंगा जी में नीर। जल
में डुबकी लगा कर, पावन करो शरीर।। -- कलकल-छलछल
कर रही, गंगा जी की धार। बुला
रहा है प्यार से, हर-हर का हरद्वार।। -- गूँज
रहा है व्योम में, बम भोले का नाद। फागुन
में सब कर रहे, शिव-शंकर को याद।। -- उत्सव
प्राणी मात्र के, जीवन के आधार। हर
मौसम में इसलिए, आते हैं त्यौहार।। -- कुहू-कुहू
कोकिल करे, कागा करता शोर। भँवरों
की गुंजार से, मन हो रहा विभोर।। -- शीत
विदा होने लगा, चली बसन्त बयार। प्यार
बाँटने आ रहा, होली का त्यौहार।। |
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रविवार, 27 फ़रवरी 2022
दोहे "चमन हुआ गुलजार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (२८ -०२ -२०२२ ) को
'का पर करूँ लेखन कि पाठक मोरा आन्हर !..'( चर्चा अंक -४३५५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
प्रकृति को साधकर लिखे बहुत सुंदर दोहे
जवाब देंहटाएंसादर
वाह!!!
जवाब देंहटाएंबसंत से मनमोहक लाजवाब दोहे।
अति सुन्दर दोहे।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर दोहे
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर दोहे सुंदर प्रकृति चित्रण के साथ।
जवाब देंहटाएं