-- परमेश्वर के नाम पर, होते वाद-विवाद। लेकिन संकट के समय, ईश्वर आता याद।। -- दम्भ और अभिमान में, मनवा रहता चूर। लेकिन पग-पग पर मनुज, है कितना मजबूर।। -- कण-कण में जो है रमा, वो केवल भगवान। मन्दिर-मस्जिद में उसे, खोज रहा नादान।। -- ईश्वर-अल्ला एक है, कहते गीता-वेद। क्यों मालिक के नाम पर, करते हो मतभेद।। -- फिरकों में बँटने लगा, अब तो सभ्य समाज। पूजा और अजान भी, बना दिखावा आज।। -- कुछ ऐसे भी सन्त हैं, जो खल-कामी-दुष्ट। कुटिल नहीं होते कभी, जीवन में सन्तुष्ट।। -- जो आये हैं धर्म के, बनकर ठेकेदार। उनसे मैली हो गयी, गंगा जी की धार।। -- ओढ़ लबादा मनुज का, आये हैं शैतान। रामनाम के नाम पर, बन बैठे धनवान।। |
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शनिवार, 12 फ़रवरी 2022
दोहे "कुटिल नहीं होते कभी, जीवन में सन्तुष्ट" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (१३-०२ -२०२२ ) को
'देखो! प्रेम मरा नहीं है'(चर्चा अंक-४३४०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सर आपकी हर एक प्रस्तुति लाजवाब और बहुत ही बेहतरीन होती है
हटाएंसादर...
🙇🙌❤
सर, बहुत सुंदर दोहे!प्रेरक और सार्थक!--ब्रजेंद्रनाथ
हटाएंचिंतन परक सार्थक दोहन विचारों का।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर दोहे।
सादर।