फिर से अपने खेत में। सरसों ने पीताम्बर पाया, फिर से अपने खेत में।। -- नये पात पेड़ों पर आये, टेसू ने भी फूल खिलाये, भँवरा गुन-गुन करता आया, फिर से अपने खेत में।। -- धानी-धानी सजी धरा है, माटी का कण-कण निखरा है, मोहक रूप बसन्ती छाया, फिर से अपने खेत में।। -- पर्वत कितना अमल-धवल है, गंगा की धारा निर्मल है, कुदरत ने सिंगार सजाया, फिर से अपने खेत में।। -- |
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बुधवार, 2 फ़रवरी 2022
गीतिका "पौधों पर छाया है यौवन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (03-02-2022 ) को 'मोहक रूप बसन्ती छाया, फिर से अपने खेत में' (चर्चा अंक 4330) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
सुन्दर और सार्थक सृजन ।
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर ! वसंत ऋतु का मनमोहक वर्णन !
जवाब देंहटाएंअति सुंदर..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुंदर! मोहक बसंत की बासंती प्रकृति का सुरम्य दृश्य उत्पन्न करता सरस गीत।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन मनमुग्ध करने वाली रचना
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