अब रचो सुखनवर गीत नया।।
फिरकों में था इन्सान बँटा,
कुछ अकस्मात् अटपटा घटा।
तब राजनीति का भिक्षुक भी,
झूठी हमदर्दी लिए डटा।
लोकतन्त्र का दानव फिर,
मानवता का घर रीत गया।
अब रचो सुखनवर गीत नया।।
जो कुटिया थी मंगलकारी,
वीरान हुई उसकी क्यारी।
भाषण में राशन बाँट रहे,
शासन में बैठे अधिकारी।
वो कैसे धीर धरेंगे अब,
जिनका दुनिया से मीत गया।
अब रचो सुखनवर गीत नया।।
अब दिवस सुहाने आयेंगे,
नूतन से हम सुख पायेंगे।
उपवन सुमनों से महकेगा,
फिर भँवरे गुन-गुन गायेंगे।
आशायें दिलाशा देती हैं,
अब रुदनभरा संगीत गया।
अब रचो सुखनवर गीत नया।।
नया सूर्य अब चमकेगा,
सारा अँधियारा हर लेगा।
जब सुख के बादल बरसेंगे,
तब “रूप” देश का
दमकेगा।
धावकमन बाजी जीत गया।
अब रचो सुखनवर गीत नया।।
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
मंगलवार, 24 दिसंबर 2013
"अब रचो सुखनवर गीत नया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
क्या बात क्या बात
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंशास्त्रीजी की रचनाये अनूठी तो होती ही हैं... यह अद्भुत, समयोचित और सटीक है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंलो साल पुराना बीत गया।
जवाब देंहटाएंअब रचो सुखनवर गीत नया।।
नया सूर्य अब चमकेगा,
सारा अँधियारा हर लेगा।
जब सुख के बादल बरसेंगे,
तब “रूप” देश का दमकेगा।
मनधावक बाजी जीत गया।
अब रचो सुखनवर गीत नया।।
सृजन के आशावादी क्षण बांधे है ये रचना।
UMMEEDON SE BHARI AAPKI KAVITA MAN KO BHA GAYI .
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमित्र! आज 'क्रिसमस-दिवस' पर शुभ कामनाएं,! सब को सेंटा क्लाज सी उदारता दे और ईसा मसीह सी 'प्रेम-शक्ति'!
जवाब देंहटाएंतब राजनीति का भिक्षुक भी,
झूठी हमदर्दी लिए डटा।
लोकतन्त्र का दानव फिर,
मानवता का घर रीत गया।
बहुत सत्य कहा !
जवाब देंहटाएंबड़ा दिन ईसा का अवतरण दिवस मुबारक।
क्रिसमस दिवस (Xmas Day )पर ऐसे ही सर्व समावेशी उद्गारों की आवश्यकता है। रचना प्रस्तुत की है आपने।
सबको नववर्ष की शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएं