फसल हुई चौपट सभी, फैली खर-पतवार।
नष्ट हो गयी सभ्यता, भ्रष्ट हुआ परिवार।।
मौन हुए साधू सभी, मुखरित हैं अब चोर।
बाढ़ दिखाई दे रही, दौलत की सब ओर।।
सदाचार का हो गया, दिन में सूरज अस्त।
अब अपनी करतूत में, दुराचार है मस्त।।
अब तो सेवाभाव का, खिसक रहा आधार।
मक्कारों की बाढ़ में, घिरा हुआ संसार।।
फसल हुई चौपट सभी, फैली खर-पतवार।
नष्ट हो गयी सभ्यता, भ्रष्ट हुआ परिवार।।
तन-मन मैले हो गये, छूट गया उपवास।
मेल-जोल का अब यहाँ, मेला हुआ उदास।।
मीत घोंपते मीत की, छुरा पीठ में आज।
आपाधापी में हुआ, दूषित सभ्य समाज।।
रिश्तों-नातों में नहीं, पहले जैसा प्यार।
बेटा जीवित बाप से, माँग रहा अधिकार।।
फसल हुई चौपट सभी, फैली खर-पतवार।
नष्ट हो गयी सभ्यता, भ्रष्ट हुआ परिवार।।
अन्न और जल हो गया, दूषण से भरपूर।
जन-साधारण हो गया, आज मज़े से दूर।।
सुख की चाहत बढ़ गयी, गौण हो गया काज।
दाता करता कर्म को, दास भोगता राज।।
मतलब का संसार है, मतलब का व्यापार। बुझा दिया है प्यार का, अब जलता अंगार।।
फसल हुई चौपट सभी, फैली खर-पतवार।
नष्ट हो गयी सभ्यता, भ्रष्ट हुआ परिवार।।
घोटालों में लिप्त हैं, राजा और वज़ीर।
माँ-बहनों का लोग अब, खीँच रहे हैं चीर।।
आज नहीं चाणक्य से, राजनीति के सन्त।
कूटनीति का हो गया, भारत से अब अन्त।।
नदिया की धारा प्रबल, कैसे होंगे पार।
नौका की मझधार में, टूट गयी पतवार।।
फसल हुई चौपट सभी, फैली खर-पतवार।
नष्ट हो गयी सभ्यता, भ्रष्ट हुआ परिवार।।
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सटीक !
जवाब देंहटाएंबढ़िया,बेहतरीन सटीक अभिव्यक्ति...!
जवाब देंहटाएं----------------------------------
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मौन हुए साधू सभी, मुखरित हैं अब चोर।
जवाब देंहटाएंबाढ़ दिखाई दे रही, दौलत की सब ओर।।
सदाचार का हो गया, दिन में सूरज अस्त।
अब अपनी करतूत में, दुराचार है मस्त।।
अब तो सेवाभाव का, खिसक रहा आधार।
मक्कारों की बाढ़ में, घिरा हुआ संसार।।
फसल हुई चौपट सभी, फैली खर-पतवार।
नष्ट हो गयी सभ्यता, भ्रष्ट हुआ परिवार।।
बहुत प्रासंगिक सवर हैं दोहावली की
मौन हुए साधू सभी, मुखरित हैं अब चोर।
जवाब देंहटाएंबाढ़ दिखाई दे रही, दौलत की सब ओर।।
सदाचार का हो गया, दिन में सूरज अस्त।
अब अपनी करतूत में, दुराचार है मस्त। वाह! बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ..
बहुत सुन्दर सटीक गीत !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट वो दूल्हा....
latest post कालाबाश फल
पाठक को बाँध कर रखने में सक्षम प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार गुरुवर
बहुत सुन्दर दोहा गीत....एक दम मस्त ..नवल भाव व कला .....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर दोहा गीत मित्रवर।
जवाब देंहटाएंघोटालों में लिप्त हैं, राजा और वज़ीर।
जवाब देंहटाएंमाँ-बहनों का लोग अब, खीँच रहे हैं चीर।।
सच हैं को शब्द देती कविता...