गीत सुनाती माटी अपने, गौरव और गुमान की।
दशा सुधारो अब तो लोगों, अपने हिन्दुस्तान की।।
खेतों में उगता है सोना, इधर-उधर क्यों झाँक रहे?
भिक्षुक बनकर हाथ पसारे, अम्बर को क्यों ताँक रहे?
आज जरूरत धरती माँ को, बेटों के श्रमदान की।
दशा सुधारो अब तो लोगों, अपने हिन्दुस्तान की।।
हरियाली के चन्दन वन में, कंकरीट के जंगल क्यों?
मानवता के मैदानों में, दावनता के दंगल क्यों?
कहाँ खो गयी साड़ी-धोती, भारत के परिधान की।
दशा सुधारो अब तो लोगों, अपने हिन्दुस्तान की।।
टोपी-पगड़ी, चोटी-बिन्दी, हमने अब बिसराई क्यों?
अपने घर में अपनी हिन्दी, सहमी सी सकुचाई क्यों?
कहाँ गयी पहचान हमारे, पुरखों के अभिमान की।
दशा सुधारो अब तो लोगों, अपने हिन्दुस्तान की।।
कहाँ गया ईमान हमारा, कहाँ गया भाई-चारा?
कट्टरपन्थी में होता, क्यों मानवता का
बँटवारा?
मूरत लुप्त हो गयी अब तो, अपने विमल-वितान
की।।
दशा सुधारो अब तो लोगों, अपने हिन्दुस्तान की।।
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
रविवार, 29 दिसंबर 2013
"गीत सुनाती माटी अपने, गौरव और गुमान की" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
बहुत सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंआत्मचिंतन के लिए प्रेरित करती बहुत ही सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंसुन्दर!
जवाब देंहटाएंटोपी-पगड़ी, चोटी-बिन्दी, हमने अब बिसराई क्यों?
जवाब देंहटाएंअपने घर में अपनी हिन्दी, सहमी-सकुचाई सी क्यों?
कहाँ गयी पहचान हमारे, पुरुखों के अभिमान की।
दशा सुधारो अब तो लोगों, अपने हिन्दुस्तान की।।
सचमुच हमने अपने सम्मान को ताक पर रखकर विदेशी साजो सामान और आचार को अपना लिया है..
वाह! क्या बात!
जवाब देंहटाएंतीन संज़ीदा एहसास
जिसमें कि ख़ुदा रहता है
खेतों में उगता है सोना, इधर-उधर क्यों झाँक रहे?
जवाब देंहटाएंभिक्षुक बनकर हाथ पसारे, अम्बर को क्यों ताँक रहे?
आज जरूरत धरती माँ को, बेटों के श्रमदान की।
दशा सुधारो अब तो लोगों, अपने हिन्दुस्तान की।।
अप्रतिम रचना हमारे वक्त का आदर्श स्वप्न बुनती देखती सी।