सबको लगती बहुत सुहानी।।
दाना-दुनका चुग कर आती।
फिर डाली पर है सुस्ताती।
रोज भोर में यह उठ जाती।
चीं-चीं का मृदु-राग सुनाती।।
फुदक-फुदक कर कला दिखाती।
झटपट नभ में यह उड़ जाती।।
तिनका-तिनका जोड़-जोड़कर।
नीड़ बनाती है यह सुन्दर।।
उसमें अण्डों को देती है।
तन-मन से उनको सेती है।।
अब यह मन ही मन मुस्काती।
चूजे पाकर खुश हो जाती।।
चुग्गा इनको नित्य खिलाती।
दुनियादारी को सिखलाती।।
एक समय ऐसा भी आता।
जब इसका मन है अकुलाता।।
फुर्र-फुर्र बच्चे उड़ जाते।
इसका घर सूना कर जाते।।
करने लगते हैं मनमानी।
चिड़िया की है यही कहानी।।
♥चित्रांकन-प्रांजल शास्त्री♥
वाह !
जवाब देंहटाएंफुर्र-फुर्र बच्चे उड़ जाते।
जवाब देंहटाएंइसका घर सूना कर जाते।।
बहुत कुछ कह गया।
सुन्दर बाल गीत।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बाल गीत।
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंbahut hee badhiyaa
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार गुरु जी -
बहुत सुन्दर .
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : कोरे ख़त आते रहे
प्यारी बाल कविता
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