सबकुछ वही पुराना सा है!
कैसे नूतन सृजन करूँ मैं?
कभी चाँदनी-कभी अँधेरा,
लगा रहे सब अपना फेरा,
जग झंझावातों का डेरा,
असुरों ने मन्दिर को घेरा,
देवालय में भीतर जाकर,
कैसे अपना भजन करूँ मैं?
कैसे नूतन सृजन करूँ मैं?
वो ही राग-वही है गाना,
लाऊँ कहाँ से नया तराना,
पथ तो है जाना-पहचाना,
लेकिन है खुदगर्ज़ ज़माना,
घी-सामग्री-समिधा के बिन,
कैसे नियमित यजन करूँ मैं?
कैसे नूतन सृजन करूँ मैं?
बना छलावा पूजन-वन्दन
मात्र दिखावा है अभिनन्दन
चारों ओर मचा है क्रन्दन,
बिखर रहे सामाजिक बन्धन,
परिजन ही करते अपमानित,
कैसे उनको सुजन करूँ मैं?
गुलशन में पादप लड़ते हैं,
कमल सरोवर में सड़ते हैं,
कदम नहीं आगे बढ़ते हैं,
पावों में कण्टक गड़ते है,
पतझड़ की मारी बगिया में,
कैसे मन को सुमन करूँ मैं?
|
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मंगलवार, 31 दिसंबर 2013
"कैसे मन को सुमन करूँ मैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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मित्रो! वर्ष २०१३ की विदाई के लिये वधाई! सभी के जीवन में नव वर्ष बहार बन कर आये!!
जवाब देंहटाएंअथ,रचना में यथार्थके साथ साथ ज्वलंत प्रश्नों का समावेश भी है !!
मेरे ब्लोगों "प्रसून" व 'साहित्य प्रसून' मवं विगत वर्ष की विदाई' में आप का स्वागत है !!
नवागत वर्ष सन् 2014 ई. की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंआपको भी सपरिवार शुभ वर्ष शुभ भावनाएं समर्पित नव वर्ष स्वागतार्थ।
जवाब देंहटाएंसभी मुखचिठियों को नया वर्ष करता है प्रणाम ,लाये शुभ भावना और मंगल हर दिन।
सबकुछ वही पुराना सा है!
कैसे नूतन सृजन करूँ मैं?
अति उत्कृष्ट रचना। परिवेश की झरबेरियों की चुभन लिए।
आप को नव वर्ष 2014 की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंकल 02/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!
आपकी इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (27-04-2014) को ''मन से उभरे जज़्बात (चर्चा मंच-1595)'' पर भी होगी
जवाब देंहटाएं--
आप ज़रूर इस ब्लॉग पे नज़र डालें
सादर
वाह !
जवाब देंहटाएं