अमल-धवल होता नहीं, सबका चित्त-चरित्र। जाँच-परख के बाद ही, यहाँ बनाना मित्र।।। -- रखना नहीं घनिष्ठता, उन लोगों के संग। जो अपने बनकर करें, गोपनीयता भंग।। -- जिसमें हो सन्देश कुछ, रचना ऐसा गीत। सात सुरों के मेल से, बनता है संगीत।। -- जो समाज को दे दिशा, कहलाता साहित्य। जीवन दे जो जगत को, वो होता आदित्य।। -- महादेव बन जाइए, करके विष का पान। धरा और आकाश में, देंगे सब सम्मान।। -- |
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सोमवार, 17 जनवरी 2022
दोहे "अमल-धवल होता नहीं, सबका चित्त-चरित्र" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (18-1-22) को "दीप तुम कब तक जलोगे ?" (चर्चा अंक 4313)पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
वन्दन
जवाब देंहटाएंजो समाज को दे दिशा, कहलाता साहित्य।
जीवन दे जो जगत को, वो होता आदित्य।।
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महादेव बन जाइए, करके विष का पान।
धरा और आकाश में, देंगे सब सम्मान।।
प्रेरक बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति
आदरणीय शास्त्रीजी. नमस्ते.
जवाब देंहटाएंसभी दोहे उजास भरे
बहुत ही अच्छे लगे.
व्यावहारिकता सिखाते
मन में उम्मीद जगाते.
आज लोक-कल्याण हेतु विष-पान करने वाले महादेव का नहीं, बल्कि सांप्रदायिक वैमनस्य का विष उगलने वाले नेताओं का ज़माना है.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सर जी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भावपूर्ण दोहे आदरणीय ,आपके दोहों में सदा गागर में सागर भरा जैसा भाव झलकता रहता है।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंसभी दोहे उत्कृष्ट ।
बहुत सुंदर रचना
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