-- सज्जनता का ओढ़ लबादा, घूम रहे शैतान! संकट में है हिन्दुस्तान! संकट में है हिन्दुस्तान!! -- द्वारे-द्वारे देते दस्तक, टेक रहे हैं अपना मस्तक, याचक बनकर माँग रहे हैं, ये वोटों का दान! संकट में है हिन्दुस्तान! संकट में है हिन्दुस्तान!! -- कोई अपना हाथ दिखाता, कोई हाथी के गुण गाता, साइकिल कोई यहाँ चलाता, कोई घड़ी का समय बताता, लेकिन झाड़ू भय खाते, ये प्राचीन निशान! संकट में है हिन्दुस्तान! संकट में है हिन्दुस्तान!! -- जीवन भर गद्दारी करते, भोली जनता का मन हरते, मक्कारी से कभी न डरते, फर्जी गणनाओं को भरते, खर्च करोड़ों का करते हैं, गिरवीं रख ईमान। संकट में है हिन्दुस्तान! संकट में है हिन्दुस्तान!! -- सोच-समझकर बटन दबाना, झाँसे में बिल्कुल मत आना, घोटाले करने वालों को, कभी न कुर्सी पर बैठाना, मत देने से पहले, लेना सही-ग़लत पहचान! संकट में है हिन्दुस्तान! संकट में है हिन्दुस्तान!! _ |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
बुधवार, 19 जनवरी 2022
गीत "माँग रहे हैं ये वोटों का दान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
कुहरे ने सूरज ढका , थर-थर काँपे देह। पर्वत पर हिमपात है , मैदानों पर मेह।१। -- कल तक छोटे वस्त्र थे , फैशन की थी होड़। लेक...
-
सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
सोच-समझकर बटन दबाना,
जवाब देंहटाएंझाँसे में बिल्कुल मत आना,
घोटाले करने वालों को,
कभी न कुर्सी पर बैठाना,
सही है, जनता को अपने मतदान का उपयोग बहुत समझदारी से करना होगा बिना किसी लोभ या दबाव मेन आए
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (२०-०१ -२०२२ ) को
'नवजात अर्चियाँ'(चर्चा अंक-४३१५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिखा है
जवाब देंहटाएंकुछ बेइमानों के निशान ज़िक्र किए जाने से बाक़ी रह गए.
जवाब देंहटाएंहिंदुस्तान को संकट में डालने वाले चोर तो सभी जगह हैं.
वाह! बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंसामायिक जागरूकता पैदा करता गीत ।
जवाब देंहटाएंसटीक सृजन।