-- मीराबाई,सूर, तुलसीदास चाहिए। आज मेरे देश को सुभाष चाहिए।। -- मोटे मगर गंग-औ-जमन घूँट रहे हैं, जल के जन्तुओं का अमन लूट रहे हैं, गधों को मिठाई नही घास चाहिए। आज मेरे देश को सुभाष चाहिए।। -- चूहे और बिल्ली जैसा खेल हो रहा, सर्प और छछूंदर जैसा मेल हो रहा, जहरभरी हमको ना मिठास चाहिए। आज मेरे देश को सुभाष चाहिए।। -- कहीं है दिवाला और दिवाली कहीं है, कहीं है खुशहाली और बेहाली कहीं है, जनता को रोजी और लिबास चाहिए। आज मेरे देश को सुभाष चाहिए।। -- मँहगाई की मार लोग झेल रहे हैं, कोठियों में नेता दण्ड पेल रहे हैं, राजनीति में कठोर पाश चाहिए। आज मेरे देश को सुभाष चाहिए।। -- |
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रविवार, 23 जनवरी 2022
गीत "देश को सुभाष चाहिए" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (24-01-2022 ) को 'वरना सारे तर्क और सारे फ़लसफ़े धरे रह जाएँगे' (चर्चा अंक 4320 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
मँहगाई की मार लोग झेल रहे हैं,
जवाब देंहटाएंकोठियों में नेता दण्ड पेल रहे हैं,
राजनीति में कठोर पाश चाहिए।
आज मेरे देश को सुभाष चाहिए।।
...बहुत सही ...
देश को सदा ही ऐसे नेतृत्व की जरुरत रही है
जवाब देंहटाएं