-- गुजर गया है साल पुराना। गाओ फिर से नया तराना।। -- सब कुछ तो पहले जैसा है, लक्ष्य आज भी तो पैसा है, सिर्फ कलेण्डर ही तो बदला, वही ठौर है, वही ठिकाना। -- नित्य नये अनुभव होते हैं, कुछ हँसते हैं, कुछ रोते हैं, जीवन तो बस एक सफर है, सबको पड़ता आना-जाना। -- पीना पड़ा यहाँ गरल है, शंकर बनना नहीं सरल है, कैसे महादेव बन जायें? मुश्किल गंगा धार बहाना। -- आपाधापी, भाग-दौड़ है, गुणा-भाग है और जोड़ है, इक आता है, इक जाता है, जग है एक मुसाफिरखाना। -- लोग मील के पत्थर जैसे, अपनी मंजिल पायें कैसे? औरों को पथ बतलाते हैं, ये क्या जानें कदम बढ़ाना। -- |
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बुधवार, 12 जनवरी 2022
गीत "गाओ फिर से नया तराना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बृहस्पतिवार (13-1-22) को "आह्वान.. युवा"(चर्चा अंक-4308)पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
बहुत ही सुन्दर और सार्थक सृजन आदरणीय लोहड़ी एवं मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन प्रेरक सार्थक।
जवाब देंहटाएंलोहड़ी एवं मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीय।
सादर।
लोग मील के पत्थर जैसे,
जवाब देंहटाएंअपनी मंजिल पायें कैसे?
औरों को पथ बतलाते हैं,
ये क्या जानें कदम बढ़ाना।
....बहुत सुंदर