कल को होगा यही पुराना।
जीवन के इस कालचक्र में,
लगा रहेगा आना-जाना।।
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गोल-गोल है दुनिया सारी,
चन्दा-सूरज गोल-गोल है।
गोल-गोल में घूम रहे सब,
गोल-गोल की यही पोल है।
घूम-घूमकर, सारे जग को,
बना रहा है काल निशाना।
जीवन के इस कालचक्र में,
लगा रहेगा आना-जाना।।
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दिन दूनी औ’ रात चौगुनी,
बढ़ती जातीं अभिलाषाएँ।
देश-काल के साथ बदलतीं,
पाप-पुण्य की परिभाषाएँ।
धन संचय की होड़ लगी है,
लेकिन साथ नहीं कुछ जाना।
जीवन के इस कालचक्र में,
लगा रहेगा आना-जाना।।
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कहीं सरल हैं कहीं वक्र हैं,
बहुत कठिन जीवन की राहें।
मंजिल पर जानेवालों की,
छोटे पथ पर लगी निगाहें।
लेकिन लक्ष्य उसे ही मिलता,
जिसने सही मार्ग पहचाना।
जीवन के इस कालचक्र में,
लगा रहेगा आना-जाना।।
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सोमवार, 15 जून 2020
गीत "साथ नहीं कुछ जाना" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-6-2020 ) को "साथ नहीं कुछ जाना"(चर्चा अंक-3734) पर भी होगी, आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-6-2020 ) को "साथ नहीं कुछ जाना"(चर्चा अंक-3734) पर भी होगी,
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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लिंक खुलने में समस्या हुई इसकेलिए क्षमा चाहती हूँ ,मैंने अब सुधार कर दिया हैं।
कामिनी सिन्हा
जीवन के इस कालचक्र में,
जवाब देंहटाएंलगा रहेगा आना-जाना।।
सत्य वचन । बहुत सुन्दर और भावपूर्ण सृजन .
बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय सर
जवाब देंहटाएंकहीं सरल है कहीं वक्र है......,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत।