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चिट्ठी-पत्री का युग बीता,
आया है अब नया जमाना।
मुट्ठी में सिमटी है दुनिया,
छूट गया पत्रालय जाना।।
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रंग-ढंग नवयुग में बदले,
चाल-ढाल भी बदल गयी है।
मंजिल पहले जैसी ही है,
मगर डगर तो बदल गयी है।
जिसको देखो वही यहाँ पर,
मोबाइल का हुआ दिवाना।
मुट्ठी में सिमटी है दुनिया,
छूट गया पत्रालय जाना।।
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भावनाओं से काम न चलता,
कामनाओं का अन्त नहीं है।
सपनों में मधुमास उगा है,
धन के बिना बसन्त नहीं है।
बिना कर्म के नहीं किसी को,
मिलता है कोई नजराना।
मुट्ठी में सिमटी है दुनिया,
छूट गया पत्रालय जाना।।
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भरे पड़े हैं ज्ञानी-ध्यानी,
अभिमानी का मान नहीं है।
गली-गली में बिकती शिक्षा,
लेकिन मिलता ज्ञान नहीं है।
भरी दलाली में दौलत है,
उगता है पैसा मनमाना।
मुट्ठी में सिमटी है दुनिया,
छूट गया पत्रालय जाना।।
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मठ मन्दिर-मस्जिद के मसले,
महज कमाने का साधन है।
ईश्वर-अल्ला गौण हो गये
बना दिखावा आराधन है।
पंचायत में न्याय न होता,
निर्बल का कुछ नहीं ठिकाना।
मुट्ठी में सिमटी है दुनिया,
छूट गया पत्रालय जाना।।
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जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
28/06/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२८-०६-२०२०) को शब्द-सृजन-२७ 'चिट्ठी' (चर्चा अंक-३७४६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
बेहतरीन सृजन ।नमन
जवाब देंहटाएंमठ मन्दिर-मस्जिद के मसले,
जवाब देंहटाएंमहज कमाने का साधन है।
ईश्वर-अल्ला गौण हो गये
बना दिखावा आराधन है।
पंचायत में न्याय न होता,
निर्बल का कुछ नहीं ठिकाना।
मुट्ठी में सिमटी है दुनिया,
छूट गया पत्रालय जाना।।
वाह!!!
लाजवाब सृजन।