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पीला-पीला और गुलाबी,
रूप सभी को भाया है।
लू के गर्म थपेड़े खाकर,
फिर कनेर मुस्काया है।।
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आया चलकर खुला खजाना,
फिर से आज कुबेर का।
निर्धन के आँगन में पनपा,
बूटा एक कनेर का।
कोमल और सजीले फूलों ने,
मन को भरमाया है।
लू के गर्म थपेड़े खाकर,
फिर कनेर मुस्काया है।।
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कितनी शीतलता देती है,
आँखों को ये हरियाली।
जब पत्तों से छनकर आती,
पवन बसन्ती मतवाली।
सुबह सवेरे गौरय्या ने,
मीठा राग सुनाया है।
लू के गर्म थपेड़े खाकर,
फिर कनेर मुस्काया है।।
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पेड़ लगाओ-धरा बचाओ,
धरती का शृंगार करो।
आँगनबाड़ी के सुमनों से,
सच्चा-सच्चा प्यार करो।
ग्रीष्मकाल में बिरुए ही तो,
देते शीतल छाया है।
लू के गर्म थपेड़े खाकर,
फिर कनेर मुस्काया है।।
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मंगलवार, 2 जून 2020
गीत "कनेर मुस्काया है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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मन को शीतल करती बहुत सुन्दर रचना. बधाई.
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत ... प्रकृति के निखार को बखूबी लिखा है ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ... भावपूर्ण ...
अति सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर नवगीत आदरणीय
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