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सवाल पर सवाल हैं, कुछ नहीं जवाब है।
राख में दबी हुई, हमारे दिल की आग है।।
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गीत भी डरे हुए, ताल-लय उदास हैं.
पात भी झरे हुए, किन्तु शेष आस हैं,
दो नयन में पल रहा, नग़मग़ी सा ख्वाब है।
राख में दबी हुई, हमारे दिल की आग है।।
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ज़िन्दगी है इक सफर, पथ नहीं सरल यहाँ,
मंजिलों को खोजता, पथिक यहाँ-कभी वहाँ,
रंग भिन्न-भिन्न हैं, किन्तु नहीं फाग है।
राख में दबी हुई, हमारे दिल की आग है।।
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बाट जोहती रहीं, डोलियाँ सजी हुई,
हाथ की हथेलियों में, मेंहदी रची हुई,
हैं सिंगार साथ में, पर नहीं सुहाग है।
राख में दबी हुई, हमारे दिल की आग है।।
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इस अँधेरी रात में, जुगनुओं की भीड़ है,
अजनबी तलाशता, सिर्फ एक नीड़ है,
रौशनी के वास्ते, जल रहा च़िराग है।
राख में दबी हुई, हमारे दिल की आग है।।
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सोमवार, 8 जून 2020
गीत "सवाल पर सवाल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुंदर सर.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएं