क्षणभंगुर है यह जगत, अमर एक भगवान।
फिर भी सत्य न मानता, अभिमानी इंसान।।
जीवन का तो एक दिन, निश्चित है निर्वाण।
समझ नहीं पाता मनुज, क्षणभंगुर हैं प्राण।।
बड़ी शान से खिल रहा, नाजुक फूल कनेर।
क्षणभंगुर है जिन्दगी, रहा सुमन मुँह फेर।।
आदिकाल से हैं वही, धरा और आकाश।
जीव-प्रकृति-ईश का, कभी न होता नाश।।
जीवन के हैं सफर में, कहीं चढ़ाई-ढाल।
करते बहुत विनाश हैं, क्षणभंगुर भूचाल।।
जीवन में होता नहीं, कामनाओं का अन्त।
जो इनसे निर्लिप्त है, वही कहाता सन्त।।
जब मिट जाता मोह है, तब आता आरोह।
जीते जी मिटता नहीं, जीवन का व्यामोह।।
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शनिवार, 20 जून 2020
दोहे "क्षणभंगुर हैं प्राण" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जीवन का सत्य यही हे
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सर
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२१ -०६-२०२०) को शब्द-सृजन-26 'क्षणभंगुर' (चर्चा अंक-३७३९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
जीवन में होता नहीं, कामनाओं का अन्त।
जवाब देंहटाएंजो इनसे निर्लिप्त है, वही कहाता सन्त।।
वाह!!!
जीवन सार समझाते सार्थक दोहे।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह शानदार सृजन।