मित्रों!
मेरा दोहा संग्रह "नागफनी के फूल"
छपकर आ गया है प्रस्तुत है आदरणीय जयसिंह आशावत जी के द्वारा
लिखी गयी भूमिका।
‘‘नागफनी के फूल’’ अनुपम दोहा कृति
हिन्दी साहित्य में दोहा छन्द का अपना गौरवशाली इतिहास
है। सन्तों की वाणी से निकले संदेश आज भी सतत रूप से लोक में व्याप्त हैं और
उनका माध्यम दोहा छंद ही बना है। दोहा अर्द्ध सम मात्रिक छन्द है, जिसमें तेरह-ग्यारह,
तेरह-ग्यारह
अर्थात एक दोहे में 48 मात्रओं वाले इस छोटे
से छंद की शक्ति मर्म को छूने तथा लक्ष्य भेदन में पूर्ण रूप से सफल होती है।
क्योंकि एक दोहे में सीमित शब्दों में पूरी बात कहना कवि का धर्म होता है अगर एक
बात एक दोहे में पूरी नहीं हुई तो फिर वह दोहा दोहे के रूप में स्थापित नहीं हो
सकता।
हिन्दी के परम विद्वान
और दोहा छन्द के विशेषज्ञ आदरणीय डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ जी की नवीन दोहा कृति "नागफनी के फूल" पढ़कर
जो आनन्द की अनुभूति हुई वह अतुलनीय है। इस संग्रह का हर एक दोहा, दोहे के व्याकरण पर खरा उतरता है। कवि ने पुस्तक का
प्रारम्भ माँ शारदे की वन्दना से किया है जो उनके आस्तिक होने का प्रमाण है।
‘‘नमन आपको शारदे मनके
हरो विकार।
नूतन छंदों का मुझे दो अनुपम उपहार।।’’
कवि की विनयशीलता का
परिचायक यह दोहा दृष्टव्य है
‘‘तुक लय गति का है नहीं, मुझको कुछ भी ज्ञान।
मेधावी मुझको करो, मैं मूरख नादान।।’’
महाकवि चन्दबरदाई ने
माँ सरस्वती की आराधना बुद्धि प्रदायिनी देवी के साथ शक्ति प्रदायिनी के रूप में
इस प्रकार की है-
‘चिंता विघ्न विनाशिनी, कमला सनी शकत्त।
हंस वाहिनी बीस हथ, माता देहु सुमत्त।।’
डॉ. रूपचन्द्र जी
शास्त्री ‘मयंक’ ने भी इसी तरह माँ वाणी की वन्दना वर्तमान हालात
को दृष्टिगत रखते हुए यह दोहा लिखकर की है जो अति सराहनीय है -
‘‘युगों युगों से सुन रहा, युग वीणा झंकार।
अब माला के साथ माँ भाला भी लो धार।।’’
कवि ने आज के सामाजिक
परिवेश का खूबसूरत चित्रण करते हुए लिखा है-
‘‘मन के घोड़े पर हुआ, लालच आज सवार।
मधुमक्खी सा हो गया, लोगों का व्यवहार।।’’
विराट व्यत्तिफ़त्व के
धनी डॉ. रुपचन्द्र जी शास्त्री ‘मयंक’ गीत, गजल, दोहा, अनुवाद, बालगीत, साहित्यिक शिक्षक और
समीक्षक आदि के रूप में ब्लॉग लेखन के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। घमण्ड से दूर
इसका श्रेय भी मित्रों को देते हैं-
‘‘देते मुझको हौसला, कदम कदम पर मीत।
बन जाते हैं इसलिए, गजलें दोहे गीत।।’’
दोहाकार को पृथ्वी, पर्यावरण, मानव जीवन, तथा जीव जगत की चिन्ता सताती है और वो लिखते हैं-
‘‘जहरीला खाना हुआ, जहरीला है नीर।
देश और परिवेश की हालत है गंभीर।।
पेड़ काटता जा रहा, धरती का इंसान।
इसीलिए आने लगे, चक्रवात तूफान।।
कैसे रक्खें संतुलन, थमता नहीं उबाल।
पापी मन इंसान का, करता बहुत बवाल।।’’
ईश्वर रचित ब्रह्माण्ड
के रहस्य की परतें खोलने में मनुष्य आदि काल से लगा हुआ है और आश्चर्यचकित रह
जाता है। इस पर कवि लिखता है -
‘‘लिए अजूबे साथ में, कुदरत की करतूत।
आलू धरती में पलें, डाली पर शहतूत।।’’
कवि वर्तमान में कोरोना
वायरस के कारण चल रहे लॉकडाउन को कैसे भूल सकता है। देखिए यह दोहा-
‘‘देशभक्ति का मत करो, कहीं कभी उपहास।
देख आपदा काल को, घर में करो निवास।।’’
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री
‘मयंक’ के दोहा संग्रह “नागफनी
के फूल” के दोहे आज के सामाजिक परिवेश आवश्यकताओं तथा लोक की भावनाओं का
जीवंत चित्रण है। विद्वान दोहाकार ने अपने दोहों में जीवन के हर पहलू को छुआ है।
सहज और सरल भाषा के साथ इस कृति के दोहों का धरातल बहुत विस्तृत है।
मुझे आशा ही नहीं अपितु
विश्वास भी है कि यह कृति समाज को दिशा बोध एवं
मार्गदर्शन प्रदान करेगी।
मेरी जानकारी के अनुसार
अब तक डॉ. रूपचन्द्र जी शास्त्री ‘मयंक’ की सुख का सूरज, नन्हें सुमन, धरा के रंग, हँसता गाता बचपन, खिली रूप की धूप,
कदम-कदम पर घास, स्मृति उपवन, गजलियाते रूप, प्रीत का व्याकरण,
टूटते अनुबन्ध
आदि दर्जनभर से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है ।
मुझे पूरी उम्मीद है कि
दोहा कृति "नागफनी के फूल" सभी वर्गों के पाठकों के लिए उपादेय
सिद्ध होगी और समीक्षकों की कसौटी पर भी खरी उतरेगी।
इस अनमोल दोहा कृति के
लिए मैं आदरणीय डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ को बधाई देता हूँ तथा उनके उज्जवल भविष्य की मंगल कामना
करते हुए, आशा करता हूँ कि भविष्य
में ऐसी ही श्रेष्ठ कृतियों का सृजन कर समाज को बेहतरीन उपहार देते रहेंगे।
दिनांक 05-04-2020
जय सिंह आशावत,
एडवोकेट
(कवि एवं लेखक)
नैनवा, जिला-बूंदी
(राजस्थान) पिन कोड -323 801
मो- 9414963266,
7737242437
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नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (22-06-2020) को 'नागफनी के फूल' (चर्चा अंक 3747)' पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
आदरणीय शास्त्री जी,दोहासंग्रह नागफनी के फूल के लिए बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंशास्त्रीजी को बधाई. सुन्दर समीक्षा. बेहतरीन दोहे.
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक समीक्षा
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी द्वारा रचित दोहों में सामाजिक चिंतन स्पष्ट दृष्टिगत होता है, जो उनकी समाज के प्रति गहरे जुड़ाव का कारण है। एक संवेदनशील व्यक्ति अपने आस पास और देश दुनिया में घटित होने वाली घटनाओं, विषमताओं और विडंबनाओं को अनदेखा नहीं कर पाता,,,,
शास्त्री जी को अपनी बात दोहों के माध्यम से लिखने में महारत लिए हासिल है वे इस विधा के महारथी है
हार्दिक शुभकामनाएं इस दोहा संग्रह के प्रकाशन पर
बहुत सुंदर दोहे, सुंदर समीक्षा,दोहा संग्रह "नागफनी के फूल" के लिए आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीय
जवाब देंहटाएंआदरणीय जयसिंह आशावत जी द्वारा बहुत सुन्दर समीक्षा । "नागफनी के फूल" दोहा संग्रह के लिए आपको बहुत बहुत बधाई सर ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी, हार्दिक बधाई एवं असीम शुभकामनाएँ!--ब्रजेन्द्रनाथ
जवाब देंहटाएंअनंत शुभकामनाएं आप की साहित्यिक यात्रा के लिए और ये इसी तरह जारी रहे
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