कौन थे? क्या थे? कहाँ हम जा रहे?
व्योम में घश्याम क्यों छाया हुआ?
भूल कर तम में पुरातन डगर को,
कण्टकों में फँस गये असहाय हो,
वास करते थे कभी यहाँ पर करोड़ो देवता,
देवताओं के नगर का नाम आर्यावर्त था,
काल बदला, देव से मानव कहाये,
ठीक था, कुछ भी नही अवसाद था,
किन्तु अब मानव से दानव बन गये,
खो गयी जाने कहाँ? प्राचीनता,
मूल्य मानव के सभी तो मिट गये,
शारदा में पंक है आया हुआ,
हे प्रभो! इस आदमी को देख लो,
लिप्त है इसमे बहुत शैतानियत,
आज परिवर्तन हुआ कैसा घना,
हो गयी है लुप्त सब इन्सानियत।
Vakai manav mulya mitate ja rahe hain. Sacchai darshati post.
जवाब देंहटाएंPAHALE COMMENT KE LIYE,
जवाब देंहटाएंBADHAYEE.
Mobille se.
sach aaj sab kuch hai magar insaniyat hi lupt ho chuki hai.
जवाब देंहटाएंआप बिल्कुल सही बात कर रहे हैं
जवाब देंहटाएं---
चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
अंतरजाल पर प्रश्नजाल छा गया!
जवाब देंहटाएंक्या बात कही आपने भी? बहुत गहरी बात कह् डाली इस रचना के माध्यम से.
जवाब देंहटाएंरामराम.