जलद जल धाम ले आये।।
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रविवार, 31 मई 2009
‘‘जलद जल धाम ले आये।’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
जलद जल धाम ले आये।।
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मिटाने प्यास धरती की,
जवाब देंहटाएंजलद जल धाम ले आये।।
बहुत सुन्दर शास्त्री जी आभार
बेहतरीन .
जवाब देंहटाएंऐसा लगा, जैसे -
जवाब देंहटाएंसावन की फुहारें
तन और मन
दोनों को भिगो गईं!
बहुत लाजवाब रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत सुन्दर कविता है आज वैसे भी मेघ छा रहे हैं
जवाब देंहटाएंaapne to saawan ka sundar chitran kar diya.
जवाब देंहटाएंshandaar.........bahut badhiya.
बहुत बढ़िया !!
जवाब देंहटाएंपंक्तियों को पढ़ कर अच्छा लगा!!
हिन्दी चिट्ठाकारों का आर्थिक सर्वेक्षण : परिणामो पर एक नजर
वर्षा के नाम यह कविता भी खूब रही.........अब तो इंतज़ार है बस जल्दी से बारिश की फुहारों में भीगने को मिले...
जवाब देंहटाएंसाभार
हमसफ़र यादों का.......