दर्पण साथ नही देगा, क्यों नाहक मन भरमाते हो?
हुस्न-इश्क के झण्डे को, क्यों डण्डे बिन फहराते हो?
मौसम के काले कुहरे को, जीवन में मत छाने दो,
सुख-सपनों में कभी नही, इसको कुहराम मचाने दो,
धरती पर बसने वालो, क्यों आसमान तक जाते हो?
हुस्न-इश्क के झण्डे को, क्यों डण्डे बिन फहराते हो?
नाम मुहब्बत है जिसका, वो जीवन भर तड़पाती हैं,
खुश-नसीब को हर्षाती यह, बाकी को भरमाती है,
सुमन चुनों उपवन में से, क्यों काँटे चुन कर लातें हो?
हुस्न-इश्क के झण्डे को, क्यों डण्डे बिन फहराते हो?
मन को वश मे कर लो, देता सन्देशा है भव-सागर,
सलिल सुधा से भर जायेगी, प्रेम-प्रीत की ये गागर,
मंजिल पर जाना है तो, क्यों राहों से घबराते हो?
हुस्न-इश्क के झण्डे को, क्यों डण्डे बिन फहराते हो?
खट्टी-मीठी यादों से ,खाली मन को मत भरमाना,
मुरझाये उपवन को फिर से, हरा-भरा करते जाना,
अपनेपन की बात करो, क्यों बे-मतलब लहराते हो?
हुस्न-इश्क के झण्डे को, क्यों डण्डे बिन फहराते हो?
अपनेपन की बात करो, क्यों बे-मतलब लहराते हो?हुस्न-इश्क के झण्डे को, क्यों डण्डे बिन फहराते हो?
जवाब देंहटाएंवाह वाह शाश्त्री जी, क्या जोरदार रचना है. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
अपनी बात को बहुत अच्छी तरह से अभिव्यक्त किया है !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया !
वाह जी आपने तो मुझे अपना कायल कर लिया है
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया शास्त्री जी, बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब। इश्को-आशिकी के क्षेत्र में भी डण्डे की महिमा का यूं बखान...क्या बात है शास्त्रीजी
जवाब देंहटाएंbehtrin..........bahut hi badhiya rachna likhi hai.badhayi.
जवाब देंहटाएंbahut badhiya majedar rachna .badhai .
जवाब देंहटाएंवाह शास्त्री जी............आपकी रचना बहुत लय में और गीत की तरह गाये जाने वाले होते हैं............विषय को बहुत ही खूबसूरती से उठाते हैं आप अपनी हर रचना में...........लाजवाब
जवाब देंहटाएंआपका यह भावपूर्ण सुन्दर गीत मन मोह गया..प्रस्तुति हेतु आभार.
जवाब देंहटाएंये गीत कहाँ से लाते हो?
जवाब देंहटाएंजो झट मन में बस जाते हैं,
यूँ ही तुम रचते रहो मीत,
हम मन ही मन में गाते हैं!
प्रियवर रावेंद्रकुमार रवि जी!
जवाब देंहटाएंमैं करता नही प्रयास कभी,
ये बरबस ही आ जाते हैं।
मन के कुछ अन्तर्भाव,
छन्द का रूप लिए छा जाते हैं।
हुस्न-इश्क के झण्डे को, क्यों डण्डे बिन फहराते हो?
जवाब देंहटाएंआपने तो ऐसे कहा है जैसे कोई गुनाह हो!