आज समय का, कुटिल - चक्र चल निकला है।
संस्कार का दुनिया भर में, दर्जा सबसे निचला है।।
नैतिकता के स्वर की लहरी मंद हो गयी।
इसीलिए नूतन पीढ़ी, स्वच्छन्द हो गयी।।
अपनी गल्ती को कोई स्वीकार नही करता है।
दोष स्वयं के, सदा दूसरों के माथे पर धरता है।।
सबके अपने नियम और सबका अन्दाज निराला है।
बिके हुए हर नेता के मुँह पर तो लटका ताला है।।
पत्रकार का मतलब था, निष्पक्ष और विद्वान-सुभट।
नये जमाने में इसकी, परिभाषाएँ सब गई पलट।।
नटवर लाल मीडिया पर, छा रहे बलात् बाहुबल से।
गाँव शहर का छँटा हुआ, अब जुड़ा हुआ है चैनल से।।
गन्दे नालों और नदियों की, बहती है अविरल धारा।
नहाने वाले पर निर्भर है, उसको क्या लगता प्यारा??
बहुत सही चित्रण किया है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत सुन्दर शब्द चित्र
जवाब देंहटाएंachchi vyangya rachna ke liye sadhuwaad.
जवाब देंहटाएंbahut khoob.........achcha vyang hai aaj ke halat paida karne walon par.
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सटीक लिखा है ..
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट की प्रत्येक पंक्ति
जवाब देंहटाएंसच्चाई बखान कर रही है!
पर इन विसंगतियों से बचने का
मार्ग-दर्शन भी बहुत जरूरी है!
सबको इस बारे में गहन चिंतन करना चाहिए!
मयंक जी की ऐसी रचनाएँ तो आती ही रहती हैं,
जो नई पीढ़ी के साथ-साथ
पुरानी पीढ़ी का भी मार्ग-दर्शन करती हैं!
बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंati sundar.
जवाब देंहटाएंVakai aaj ki vidambana jhalakti hai in panktiyon mein.
जवाब देंहटाएंआपका kahna सही है शास्त्री जी ..........आज का ज़माना ऐसा ही है...........आपका लिखा हर चाँद.सत्य बयान कर रहा है..आइना है समाज का आपकी रचना................लाजवाब
जवाब देंहटाएं