तब तक जहाँ में रहना, जब तक है आबोदाना
सुख के सभी हैं साथी, दुख का कोई न संगी
होते हैं गमजदा जब, हँसता है तब जमाना
घर की तलाश में जो, दर-दर भटक रहे हैं
खानाबदोश को तो, मिलता नहीं ठिकाना
अपना नहीं बनाया, रहने को आशियाना
लेकिन लगा रहा है, वो रोज शामियाना
मंजिल मिली न अब तक, दर-दर भटक रहा है
बेरंग जिन्दगी का, उलझा है ताना-बाना
अशआर हैं अधूरे, ग़ज़लें सिसक रहीं हैं
दुनिया समझ रही है, लहजा है शायराना
हुनर को इस जहाँ में, कोई न पूछता है
मालिक के दोजहाँ में, खाली हुआ खजाना
लड़ते नहीं कभी भी, बगिया में फूल-काँटे
आया न आदमी को, आपस में सुर मिलाना
दिल की नजर धुँधली, है “रूप” तिलमिलाता
महफिल में मुफलिसी की, अशआर गुनगुनाना
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सोमवार, 15 जून 2020
ग़ज़ल "खाली हुआ खजाना" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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हर शेर जिंदगी का पाठ पढाता हुआ ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब गज़ल ...
जीवन की हकीकत का, इतना सा है फसाना
जवाब देंहटाएंतब तक जहाँ में रहना, जब तक है आबोदाना,
यह हकीकत है !
काश जिंदगी का फलसफा समझ जाए इंसान तो ....
जवाब देंहटाएंपूरी गज़ल लाजबाब ..हर शेर सच्चाई से भरा
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