वासन्ती मौसम हुआ, काम रहा है जाग। बगिया में गाने लगे, कोयल-कागा राग।२। लोगों ने अब प्यार को, समझ लिया आसान। अपने ढंग से कर रहे, प्रेमी अनुसंधान।३। खेल हुआ अब प्यार का, आडम्बर से युक्त। सीमाओं को लाँघता, यौवन है उन्मुक्त।४। बुरे-भले का है नहीं, कहीं किसी को ज्ञान। बिना लक्ष्य के उड़ रहा, नभ में प्रीत विमान।५। प्रेम दिवस पर बह रही, दुनियाभर में धार। नजर न आया है कहीं, सच्चा-सच्चा प्यार।६। धीरज और विवेक तो, नहीं किसी के पास। लोग बुझाना चाहते, बिन पानी के प्यास।७। कंकड़-काँटों से भरी, प्यार-प्रीत की राह। मंजिल पाने की सभी, रखते मन में चाह।८। दिखा नहीं है प्रणय में, मन-विचार का मेल। समझ लिया संसार ने, इसको केवल खेल।९। सुख सरिता की धार का, पथ है अब अवरुद्ध। अविरल प्रेम प्रवाह से, इसको करो समृद्ध।१०। दिल से मत तजना कभी, प्रीत-रीत उद्गार। सारस से लो सीख तुम, क्या होता है प्यार।११। चिकनी-चुपड़ी देखकर, मत टपकाओ लार। प्यार नहीं है वासना, यह तो है उपहार।१२। अपनाओ वो सभ्यता, जिसमें हो अनुराग। पश्चिम अनुकरण का, अब तो कर दो त्याग।१३। चुनिये सोच-विचारकर, जीवन भर के मीत। जिसको सुर में गा सको, वही बनाओ गीत।१४। |
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रविवार, 14 फ़रवरी 2021
दोहे "मातृ पितृ पूजन दिवस" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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अपनाओ वो सभ्यता, जिसमें हो अनुराग।
जवाब देंहटाएंपश्चिम अनुकरण का, अब तो कर दो त्याग।
हर दोहा शानदार... प्रेरक और मार्गदर्शक
साधुवाद आदरणीय 🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
प्रेम करना बुरा नहीं है। अपनी संस्कृति को ताक पर रखकर प्रेम का प्रदर्शन करना बुरा है। सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत और सामयिक दोहे |हार्दिक शुभकामनायें आपको
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी सीख से सजे आपके दोहे अप्रतिम है
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम
बहुत ही सुंदर शानदार दोहे..समसामयिक और संदेश पूर्ण रचना के लिए आपको हार्दिक शुभकामनायें..
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 15 फ़रवरी 2021 को चर्चामंच <a href="https://charchamanch.blogspot.com/ बसंत का स्वागत है (चर्चा अंक-3978) पर भी होगी।
अपनाओ वो सभ्यता, जिसमें हो अनुराग।
जवाब देंहटाएंपश्चिम अनुकरण का, अब तो कर दो त्याग।१३।
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चुनिये सोच-विचारकर, जीवन भर के मीत।
जिसको सुर में गा सको, वही बनाओ गीत।
बहुत सुंदर, प्रेरणादायक दोहे !!!
सादर नमन आदरणीय 🌹🙏🌹
- डॉ शरद सिंह
अपनाओ वो सभ्यता, जिसमें हो अनुराग।
जवाब देंहटाएंपश्चिम अनुकरण का, अब तो कर दो त्याग।१३।
सभी दोहे शिक्षा प्रद । आभार ।
अपनाओ वो सभ्यता, जिसमें हो अनुराग।
जवाब देंहटाएंपश्चिम अनुकरण का, अब तो कर दो त्याग।
बहुत सुंदर रचना।
प्रणाम शास्त्री जी, दिखा नहीं है प्रणय में, मन-विचार का मेल।
जवाब देंहटाएंसमझ लिया संसार ने, इसको केवल खेल...निश्चित ही इस उथले प्रेम की गहराई कोई क्योंकर नापे
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जवाब देंहटाएंमात-पिता के चरण छू, प्रभु का करना ध्यान।
कभी न इनका कीजिए, जीवन में अपमान।... अतिसुंदर
बहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएं