आँखें कर देतीं इज़हार -- नफरत-चाहत की भाषा का आँखों में संचित भण्डार -- बिन काग़ज़ के, बिना क़लम के लिख देतीं सारे उद्गार -- नहीं छिपाये छिपता सुख-दुख करलो चाहे यत्न हजार -- पावस लगती रात अमावस हो जातीं जब आँखें चार -- नहीं जोत जिनकी आँखों में उनका है सूना संसार -- 'रूप' इन्हीं से जीवन का है आँखें कुदरत का उपहार -- |
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बुधवार, 24 फ़रवरी 2021
ग़ज़ल "आँखें कर देतीं इज़हार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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पावस लगती रात अमावस
जवाब देंहटाएंहो जातीं जब आँखें चार
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नहीं जोत जिनकी आँखों में
उनका है सूना संसार
--
'रूप' इन्हीं से जीवन का है
आँखें कुदरत का उपहार
--
आंखों को केंद्रित कर रची गई यह हिन्दी ग़ज़ल उत्कृष्ट सृजन है आदरणीय 🙏
साधुवाद
अनेक हार्दिक शुभकामनाएं 🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (२५-०२-२०२१) को 'असर अब गहरा होगा' (चर्चा अंक-३९८८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
आंखे बोलती हैं.. आपने बहुत सुंदरता से इस ईश्वरीय देन का वर्णन किया है..
जवाब देंहटाएंसादर नमन..
लाजवाब सृजन .
जवाब देंहटाएंआँखो पर सुंदर गीतिका आदरणीय।
जवाब देंहटाएंसुंदर भावपूर्ण रचना।
सादर।
बहुत सुंदर गीत ।
जवाब देंहटाएंआँखों की महिमा बतातीं सुंदर पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय सर,सादर नमन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
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